-
Advertisement
ओबीसी के ठेकेदार बनने वाले नेताओं को ही नहीं पता घृत होता है या घिरथ
Last Updated on October 3, 2022 by sintu kumar
अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी के ठेकेदार बनने का दम भरने वाले नेताओं से अगर कोई यह पूछे कि घृत होता है या घिरथ तो शायद ही बता पाएं। बस इतना जरूर पता है कि इस जाति विशेष से वोट बटोरने हैं। अगर इसके अलावा और कुछ पता होता तो इस शब्द को ही सरकारी कागजों में दुरूस्त करवा लेते। यह मुद्दा आज यहां इसलिए उठाया जा रहा है क्योंकि वर्षों बीत गए जब भी चुनाव नजदीक आता है तो है तो इन नेताओं को ओबीसी की याद सताने लगती है। अपने को ओबीसी का ठेकेदार कहलाने वाले इन नेताओं को पता होना चाहिए कि वर्ष 1980 के सरकारी कागजों में इस जाति विशेष का नाम जल्दबाजी में गलत तरीके से व्याख्याचित होने से आज तक इसे गलत तरीके से ही बोला व लिखा जाता रहा। घृत समाज के लोगों को घिरथ पुकारे जाने पर एक खीझ है, पर किसी ने इसे गहराई से जानने की कोशिश नहीं की। वास्तव में घृत शब्द को सरकारी कागजों में घिरथ बनाकर रख दिया,पर उस गलती को आज तक ओबीसी के ठेकेदार बनने वाले नेता सुधार नहीं पाए।
यह भी पढ़ेंः क्या बीजेपी तोड़ पाएगी 3 दशक का सिलसिला! या दोहराया जाएगा इतिहास
याद रहे कि 20 दिसंबर, 1978 में जनता पार्टी सरकार में तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व मोरारजी देसाई ने संसद के पटल पर पिछड़े वर्ग के लिए एक आयोग वीपी मंडल की अध्यक्षता में गठित करने की घोषणा की थी। इसी के चलते देशभर में 1980 में ऐसी जाति विशेष को अन्य पिछड़ा वर्ग के तहत लाया गया। इसी प्रक्रिया को जब पूरा किया जा रहा था तो घृत समाज के तत्कालीन नेताओं ने आयोग को एक की जगह पांच नाम लिखवा दिए। जिनमें पहला Ghirath घिरथ , दूसरा Ghrit घृत, तीसरा Grith घृत, चौथा Bhati बाहती व पांचवा Chang चाहंग लिखा गया है। सरकारी कागज यह सब दर्शाते हैं। होना यह चाहिए था कि घृत बाहती चांहग लिखा जाता। तब से लेकर सरकारी कामकाज की भाषा, आम बोलचाल में पहले शब्द घिरथ का प्रयोग किया जाने लगा,जबकि यह शब्द असल में घृत है।
हैरानी की बात तो यह है कि वर्ष 1980 के बाद से आज तक कई सरकारें आई व चलीं गई पर इस समाज के नाम पर रोटियां सेकने वाले और तो और इस शब्द को ही ठीक ना करवाया जा सका। यानी सच्चाई यह है कि एक शब्द की गलती ने नामकरण ही बिगाड़ कर रख दिया। सरकारी कागजों में घृत से घिरथ बन गए लोग अब पुनः घृत बनने के लिए सरकारी कागजों में उधेड़-बुन के लिए तत्पर हैं। पहले जिम्मेदारी के तौर पर कौन लेता है यही देखने वाली बात है। क्या ओबीसी के ठेकेदार बनने का दम भरने वालों में से कोई एक भी ऐसा है जो इस शब्द को ही ठीक करवा सके।