-
Advertisement
लोहड़ी नाम कहां से आया ? जानिए इस दिन क्यों जलाई जाती है आग
Last Updated on January 12, 2021 by Sintu Kumar
उत्तर भारत में लोहड़ी का त्योहार बड़े धूमधाम से मनाया जाता है खासतौर पर पंजाब में तो लोहड़ी (Lohri) की खूब धूम रहती है। इस साल लोहड़ी का पर्व 13 जनवरी यानी बुधवार को मनाया जाएगा। लोहड़ी के समय किसानों के खेत लहलहाने लगते हैं और रबी की फसल कटकर आती है। नई फसल के आने की खुशी और अगली बुवाई की तैयारी से पहले लोहड़ी का जश्न मनाया जाता है। इस दिन सभी अपने घर और चौराहों के बाहर लोहड़ी जलाते हैं। आग का घेरा बनाकर लोहड़ी के गीत गाए जाते हैं और सब मिलकर रेवड़ी, मूंगफली आदि खाते हैं। लोहड़ी का त्योहार शरद ऋतु (Winter season) के अंत में मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि लोहड़ी के दिन साल की सबसे लंबी अंतिम रात होती है और अगले दिन से धीरे-धीरे दिन बढ़ने लगता है।
यह भी पढ़ें: हर राज्य में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है मकर संक्रांति का पावन पर्व
ऐसे पड़ा लोहड़ी नाम
हर त्योहार के पीछे कोई किस्से कहानी होती है जिससे उससे शुरुआत के बारे में पता चलता है। लोहड़ी शब्द को लेकर लोगों की अलग-अलग मान्यताएं हैं। कई लोग मानते हैं कि लोहड़ी शब्द लोई (संत कबीर की पत्नी) से उत्पन्न हुआ था, लेकिन कई लोग इसे तिलोड़ी से उत्पन्न हुआ मानते हैं, जो बाद में लोहड़ी हो गया। वहीं, कुछ लोग यह मानते हैं कि यह शब्द लोह से उत्पन्न हुआ था, जो चपाती बनाने के लिए प्रयुक्त एक उपकरण है।
आग जलाने के पीछे ये है मान्यताएं
लोहड़ी के दिन आग क्यों जलाई जाती है इसको लेकर माना जाता है कि यह आग राजा दक्ष की पुत्री सती की याद में जलाई जाती है। पौराणिक कथा (Mythology) के अनुसार एक बार राजा दक्ष ने यज्ञ करवाया और इसमें अपने दामाद शिव और पुत्री सती को आमंत्रित नहीं किया। इस बात से निराश होकर सती अपने पिता के पास जवाब लेने गईं कि उन्होंने शिव जी को यज्ञ में निमंत्रण क्यों नहीं भेजा। इस बात पर राजा दक्ष ने सती और भगवान शिव की बहुत निंदा की। सती बहुत रोईं और उनसे अपने पति का अपमान नहीं देखा गया और उन्होंने उसी यज्ञ में खुद को भस्म कर दिया। सती के मौत की खबर सुन खुद भगवान शिव ने वीरभद्र को उत्पन्न कर उसके द्वारा यज्ञ का विध्वंस करा दिया। वहीं, कुछ लोगों का मानना है कि यह आग पूस की आखिरी रात और माघ की पहली सुबह की कड़क ठंड को कम करने के लिए जलाई जाती है।
लोहड़ी के लिए कई दिनों पहले से ही लकड़ियां इकट्ठा की जाती हैं। पंजाब में बच्चे लोक गीत गाते हुए घर-घर जाकर लोहड़ी के लिए लकड़ियां जुटाते हैं। इन लकड़ियों को किसी खुले और बड़े स्थान पर रखा जाता है ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग वहां इकट्ठा हों और सबके साथ त्योहार मना सकें। लोहड़ी की रात सभी लोग लकड़ियों के इस झुंड के चारों ओर इकट्ठा होते हैं फिर पारंपरिक तौर-तरीकों से आग लगाई जाती है। इस अग्नि के चारों ओर लोग नाचते-गाते हुए उसमें मूंगफली, गजक, पॉपकॉर्न, मक्का और रेवड़ी की आहुति देते हैं। इस दौरान पारंपरिक लोक गीतों को गाया जाता है।
पंजाब में इस दिन लोग विवाहित बेटियों को प्रेम के साथ घर बुलाते हैं। उन्हें आदर व सत्कार के साथ भोजन कराया जाता है और कपड़े व उपहार भेंट किए जाते हैं। पंजाबी परिवार में किसी नवजात बच्चे और नवविवाहित जोड़े की पहली लोहड़ी बेहद खास होती है। ऐसे घर में लोहड़ी के मौके पर जश्न मनाया जाता है और दूर-दूर से रिश्तेदारों व करीबियों को आमंत्रित किया जाता है। इस तरह ये त्योहार प्रेम के साथ मनाया जाता है।