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ठंड काफी थी … ऊपर से बर्फीले पहाड़ों को छूकर आती हवा ने और भी मुसीबत डाल रखी थी। सारी रात आकाश का लंबा सफर करके चांद बेतरह थक गया था और उसे बार-बार नींद के झोंके आ रहे थे। इसलिए अपने आकाश महल में जाकर उसने दरवाजे बंद किए और बाहर डू नॉट डिस्टर्व का फ्लैग लगा दिया। चांद सीधे अपने बिस्तर पर गया और बादलों की रजाई ओढ़ कर सो गया। बादलों की मीठी गर्माहट ने जल्दी ही चांद को सपनों की दुनिया में पहुंचा दिया। अब उसके चारों तरफ तारों भरा आकाश था और वह मुलायम रजाई ओढ़े बादलों पर टिका धीरे-धीरे हवा के साथ उड़ता जा रहा था। इस उड़ने में उसे बहुत मजा आ रहा था क्योंकि बादलों की रजाई की गर्माहट उसे भली लग रही थी तभी उसके कानों में बड़ी मीठी सी आवाज सुनाई दी …।
-चंदा मामा… ओ चंदा मामा ..आप अभी से सो गए…अभी तो काफी रात बाकी है। यह क्या तरीका है, उठो चंदा मामा।
चांद सोता रहा, खोया रहा अपने सपनों की खूबसूरत दुनिया में…
उसने उस नन्हीं आवाज को अनसुना कर दिया।
-चंदा मामा उठो तो सही …देखो दुनिया में कितना अंधेरा छाया हुआ है…आज आप जल्दी सो गए। मैं कितनी मुश्किल से जुगनू वाली लालटेन लेकर आई हूं। मेरे दो दोस्त और भी अपने घर में जुगनुओं की लालटेन लेकर बैठे हैं। किसी को कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा ।
चांद फिर भी आंखें बंद किए रहा।
-चंदा मामा…इस बार तेज आवाज आई…।
-क्यों तंग कर रहे हो मुझे सोने दो चांद नींद में कुनमुनाया।
-अरे बाहर निकलो तो सही…देखो तो सही कितनी सुंदर रात है … बस तुम्हारे निकलने की बात है।
आ जाओ हम सब मिलकर खेलते हैं लुका-छिपी।
– क्या लुका-छिपी ….? चांद उठ कर बैठ गया। यह तो उसका पसंदीदा खेल था और इसमें बादल उसका पूरा साथ देते थे।
उसने दरवाजा खोला ….बाहर एक छोटी सी लड़की हाथ में सचमुच जुगनुओं की लालटेन लेकर खड़ी थी। उसके शीशे के अंदर जुगनू चमक रहे थे।
-मैं गिन्नी हूं और आपको लेने आई हूं क्योंकि आपके जल्दी सो जाने से धरती पर बहुत अंधेरा हो गया है।
-मैं थक गया था पर मैं लुका-छिपी खेलना चाहता हूं। हम कहां चलेंगे…?
– धरती पर … वहां मेरे दो और दोस्त आपका इंतजार कर रहे हैं।
चांद ने गिन्नी का हाथ पकड़ा और चांदी की सीढ़ियों से नीचे उतर आया। नीचे धरती पर एक बहुत खूबसूरत सा बागीचा था उसमें ढेरों फूल खिले थे । बादलों की कालीन पर बैठे चांद और गिन्नी वहीं उतरे। गिन्नी चांद को लेकर बागीचे के बीच में बने ट्री हाउस के पास ले गई। वहां दो बच्चे और थे । उनके पास भी जुगनू वाला लैंप था…।
-सोनू…मिकी देखो मैं कि अपने साथ लेकर आई हूं…चंदा मामा हां, चंदा मामा वही जो आसमान में चमकते हैं।
बच्चों ने झांक कर देखा …सचमुच वहां चांद था हमेशा की तरह ही मुस्कुराता हुआ। वे ट्री हाउस से नीचे उतर आए। रात भर वे चारों पेड़ों के पीछे लुका छिपी खेलते रहे। तब तक, जब तक भोर का तारा चमकने नहीं लगा।
-अब मेरे जाने का वक्त हो गया… सूरज आने ही वाला है और अब मैं अपने कमरे में जाकर सो जाऊंगा चांद ने कहा।
तीनों बच्चे उसे विदा देने आए और वह बादलों की कालीन पर सवार होकर उड़ता हुआ आसमान में चला गया । अपने महल में जाने से पहले उसने मुड़कर देखा तीनों बच्चे हाथ हिला रह थे । उसने भी हाथ हिलाया और महल में चला गया।ॉ
-गिन्नी उठो तो सही …देख तो कितना वक्त निकल आया है। आज तुझे स्कूल नहीं जाना …?
आंखें मलती हुई गिन्नी उठ गई…। ओह तो यह सपना था जो वह सारी रात देखती रही थी…पर कितना सुंदर सपना।
– आज मैंने एक अजीब सा सपना देखा कि मैं चांद के पास गई थी …उस दोपहर रिसेस के पीरियड में गिन्नी ने सोनू और मिकी से कहा ।
-अरे पर हमने भी देखा कि हम चंदा मामा के साथ लुका छिपी खेल रहे हैं। वे दोनों एक साथ बोले।
-मेरा सपना, तुम दोनों का सपना एक जैसा ही कैसे हुआ।
-हम चांद से ही पूछ लेते हैं…वह देखो अब भी आसमान में दिख रहा है।
-चंदा मामा क्या कल आप हमारे साथ थे ? तीनों जोर से चिल्लाए।
चांद ने आंखें झपकाईं और एक लंबी स्माइली उसके चेहरे पर खिंच गई।
-आयशा खान
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