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त्रिपुर भैरवी स्वरूप में देवी छठी महाविद्या के रूप में अवस्थित हैं, ‘त्रिपुर’ शब्द का अर्थ हैं, तीनों लोक (स्वर्ग, पृथ्वी तथा पाताल) और ‘भैरवी’ विनाश के सिद्धांत रूप में अवस्थित हैं। तीनों लोकों के अंतर्गत विनाश और विध्वंस से सम्बंधित भगवान शिव की शक्ति हैं, उनके विध्वंसक प्रवृति की देवी प्रतिनिधित्व करती हैं। विनाशक प्रकृति से युक्त देवी पूर्ण ज्ञानमयी भी हैं। विध्वंस काल उपस्थित होने पर अपने देवी अपने भयंकर तथा उग्र स्वरूप में भगवान शिव के साथ उपस्थित रहती हैं। देवी तामसी गुण सम्पन्न हैं तथा काल-रात्रि या महा-काली के समान गुण वाली हैं।
त्रिपुर भैरवी की उपासना से सभी बंधन दूर हो जाते हैं। इनकी उपासना भव-बन्ध-मोचन कही जाती है। इनकी उपासना से व्यक्ति को सफलता एवं सर्वसंपदा की प्राप्ति होती है। शक्ति-साधना तथा भक्ति-मार्ग में किसी भी रूप में त्रिपुर भैरवी की उपासना फलदायक ही है, साधना द्वारा अहंकार का नाश होता है तब साधक में पूर्ण शिशुत्व का उदय हो जाता है और माता, साधक के समक्ष प्रकट होती है। भक्ति-भाव से मन्त्र-जप, पूजा, होम करने से भगवती त्रिपुर भैरवी प्रसन्न होती हैं। उनकी प्रसन्नता से साधक को सहज ही संपूर्ण अभीष्टों की प्राप्ति होती है।‘नारद-पाञ्चरात्र’ के अनुसार एक बार जब देवी काली के मन में आया कि वह पुनः अपना गौर वर्ण प्राप्त कर लें तो यह सोचकर देवी अन्तर्धान हो गईं। भगवान शिव देवी को अपने समक्ष न पाकर उन्हें ढूंढने का प्रयास करने लगे। शिवजी ने महर्षि नारदजी से देवी के विषय में पूछा। तब नारद जी ने कहा कि शक्ति के दर्शन आपको सुमेरु के उत्तर में हो सकते हैं वहीं देवी की प्रत्यक्ष उपस्थित होने की बात संभव हो सकेगी। तब भोले शंकर की आज्ञानुसार नारदजी देवी को खोजने के लिए वहां गए। महर्षि नारद जी ने भी वहां पहुंच कर देवी से शिवजी के साथ विवाह का प्रस्ताव रखा। यह प्रस्ताव सुनकर देवी क्रुद्ध हो गईं और उनकी देह से एक अन्य षोडशी विग्रह प्रकट हुआ। इस प्रकार उससे छाया-विग्रह “त्रिपुर-भैरवी” का प्राकट्य हुआ।
त्रिपुर भैरवी मंत्र के जाप एवं उच्चारण द्वारा साधक शक्ति का विस्तार करता है तथा भक्ति की संपूर्णता को पाता है “हंसै हसकरी हसै” और “ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नमः” के जाप से सभी कष्टों का नाश होता है।
मां का स्वरूप सृष्टि के निर्माण और संहार क्रम को जारी रखे हुए है। मां त्रिपुर भैरवी तमोगुण एवं रजोगुण से परिपूर्ण हैं। मां भैरवी के अन्य तेरह स्वरूप हैं इनका हर रूप अपने आप अन्यतम है। माता के किसी भी स्वरूप की साधना साधक को सार्थक कर देती है। मां त्रिपुर भैरवी कंठ में मुंड माला धारण किए हुए हैं। मां के हाथों में है। मां स्वयं साधनामय हैं उन्होंने अभय और वर मुद्रा धारण कर रखी है जो भक्तों को सौभाग्य प्रदान करती है। मां ने लाल वस्त्र धारण किया है, उलके हाथ में विद्या तत्व है। मां त्रिपुर भैरवी की पूजा में लाल रंग का उपयोग किया जाना लाभदायक है।
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