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बीजेपी को आखिर क्यों आई धूमल शांता की याद
Last Updated on October 20, 2021 by Vishal Rana
शिमला। उपचुनाव में सीएम सहित बीजेपी की साख दांव पर है, हार की गूंज हिमाचल की पहाड़ियों से निकल कर पंजाब के रास्ते यूपी पहुंचने में देर नहीं लगेगी। इस बात को कमोबेश दिल्ली से शिमला तक के सभी बीजेपी के नेता जानते भी हैं, और समझते भी। इसलिए मुश्किल घड़ी में बीजेपी ने एक बार फिर अपने बुजुर्गों को याद किया है। शांता कुमार और प्रेम कुमार धूमल अब अपने अपने किलों से निकल कर जयराम के राज को बचाने निकलेंगे। यह जयराम सहित बीजेपी के लिए जरूरी भी और मजबूरी भी। भीतरघात की चिंगारी बीजेपी में 1990 के दशक से धधक रही है, ये गुट और वो गुट के खेल में बीजेपी ने कई बार जीत को हार में तब्दील होते करीब से देखा है। लेकिन अब पूरा का पूरा खेल बदल चुका है, खेल खिलाने वाला आयोजक भी। केंद्र में मोदी के आते ही प्रेम कुमार धूमल को साइड लाइन किया जाने लगा, 2017 का चुनाव जब धूमल साहब हारे तो हाईकमान को उन्हें मार्गदर्शक मंडल में भेजने का रास्ता क्लियर हो गया, नए नवेले दूल्हे जयराम को उन्होंने हिमाचल की कमान सौंप कर पीढ़ी परिवर्तन का राग अलापा। इधर, जयराम सराकर भी कमोबेश भितरघात की लौ को अपने अंदर समेटे दिल्ली के इशारों पर चलती रही। लेकिन अब इम्तहान की घड़ी बिलकुल सामने है, जयराम को अपने काम का लेखा जोखा सबके सामने रखना है, सियासत के इस होमवर्क में प्रदेश बीजेपी को अब अपने बुजुर्गों की याद आई है। सियासी नेपथ्य से निकालने के लिए दिल्ली ने खुद इशारा दिया है। खास बात यह है कि जिस राजा को उन्होंने 2017 में सत्ता पर बैठाया, आज उसे मदद की दरकार है। इस बार तो दिल्ली ने मदद से साफ इंकार कर दिया है, ऐसे में हिमाचल बीजेपी की निगाहें अपने दो बुजुर्गों पर आकर टिक गई हैं। क्या धूमल और शांता कुमार उपचुनाव में सीएम जयराम के खेवनहार बनेंगे। देखना दिलचस्प होगा।