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शिमला। प्राचीन कलाओं के संरक्षण को लेकर शिमला के गेयटी में जुटे कलाकार जागरुकता के साथ-साथ निर्जीव वस्तुओं में जान फूंकने का काम बाखूबी कर रहे हैं। ये कलाकार धातु, लकड़ी, पत्थर और कपड़े में ऐसी कलाकारी पेश करते हैं कि एक बार देखने से ऐसा लगता है कि यह असली हैं।
शिमला के गेयटी में 16 फरवरी से शुरू हुई 10 दिवसीय वर्कशाप में परंपरागत कला को बचाए रखने के लिए देशभर के दर्जनों कलाकार पत्थर की मूर्तियां, धातुओं की शिल्पकला तथा काष्ठ कला के माध्यम से निर्जीव वस्तुओं में जान फूंकने का काम कर रहे हैं।
ललित कला अकादमी और भाषा कला एवं संस्कृति विभाग द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित इस कार्यशाला में हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब, दिल्ली और आसाम से दो दर्जन से ज्यादा कलाकार भाग ले रहे हैं। आयोजकों का मानना है कि इस तरह की कार्यशाला न केवल परंपरागत कला को बचाने में मदद करेगी, बल्कि नए एवं युवा कलाकारों को प्रोत्साहित करने में भी मददगार साबित होती है। युवा एवं परपंरागत कलाकार जहां एकओर हिमाचल के कुल्लू से शिल्प कला को बचाने में मदद कर रहे हैं, वहीं चंबा और मंडी के कलाकार धातुओं में देवताओं की मूर्तियों को निखार रहे हैं। देश के दूसरे हिस्सों से कलाकार जहां काष्ठ कला को बचाने में मदद कर रहे हैं, तो वहीं एक दूसरे से नई-नई कलाएं सीख भी रहे हैं। जनजातीय क्षेत्र लाहौल स्पीति के कलाकार परपंरागत तिब्बत की थंका पेंटिंग को बचाने और बढ़ाने के लिए इस तरह के कार्यक्रमों को महत्वपूर्ण मानते हैं।
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