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नई दिल्ली। भारतीय वैज्ञानिकों (Indian scientists) द्वारा Tuberculosis यानी टीबी का 100 फीसदी इलाज (100 percent treatment) ढूंढने का दावा किया गया है। कोलकाता के काउंसिल ऑफ साइंटिफिक ऐंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (CSIR)-इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ केमिकल बायॉलजी और कोलकाता के ही बोस इंस्टिट्यूट व जाधवपुर यूनिवर्सिटी के कुछ वैज्ञानिकों की टीम ने पाया कि टीबी का बैक्टीरिया MPT63 नाम का एक प्रोटीन प्रड्यूस करता है। हो सकता है कि इस प्रोटीन की वजह से ही वह थैलीनुमा स्ट्रक्चर फट जाता हो। जब ऐसिडिटी होती है तो ये प्रोटीन स्ट्रक्चर अपना रूप बदलकर अचानक ही जहरीला रूप ले लेते हैं और मैक्रोफेजेस को नुकसान पहुंचाते हैं। इसकी वजह से इन वाइट ब्लड सेल्स की मौत हो जाती है और बैक्टीरिया रिलीज हो जाता है।
इससे पहले वैज्ञानिकों की टीम ने पता लगाया कि मैक्रोफेज नाम के वाइट ब्लड सेल्स द्वारा निर्मित थैलीनुमा स्ट्रक्चर से टीबी का बैक्टीरिया किस तरह रिलीज होता है। ये स्ट्रक्चर बैक्टीरिया को अपनी गिरफ्त में रखता है और रिलीज नहीं होने देता। वैज्ञानिकों ने सालों तक इस विषय पर शोध किया, लेकिन कोई सकारात्मक परिणाम सामने नहीं आया। बता दें कि वैज्ञानिकों की टीम ने पता लगाया कि मैक्रोफेज नाम के वाइट ब्लड सेल्स द्वारा निर्मित थैलीनुमा स्ट्रक्चर से टीबी का बैक्टीरिया किस तरह रिलीज होता है। ये स्ट्रक्चर बैक्टीरिया को अपनी गिरफ्त में रखता है और रिलीज नहीं होने देता। वैज्ञानिकों ने सालों तक इस विषय पर शोध किया, लेकिन कोई सकारात्मक परिणाम सामने नहीं आया। वहीं कुछ वक्त पहले वैज्ञानिकों ने कहा था कि टीबी के बैक्टीरिया ने खुद को इतना अधिक ताकतवर बना लिया है कि उस पर नवनिर्मित दवाएं भी बेअसर हो सकती हैं।
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