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आज विश्व रेडियो दिवस है। हर घर में गूंजने वाली रेडियो की आवाज बचपन में एक जादू की दुनिया के समान लगती थी। बड़े होने पर यह जीवन का हिस्सा बन गई । मेरी नजर में रेडियो का महत्व आज भी उतना ही है जितना पहले हुआ करता था। उद्घोषकों की आवाज आज भी जानी- पहचानी लगती है। आज के दौर में इसका स्वरूप व्यापक हुआ है और यह मोबाइल से लेकर हमारी कार तक में मौजूद है। बढ़ते चैनलों ने इस की पहुंच को और भी बड़ा कर दिया है।
रेडियो विश्व का सबसे सुलभ मीडिया है। दुनिया के किसी भी कोने में रेडियो सुना जा सकता है। जो लोग पढ़ना-लिखना नहीं जानते वे रेडियो सुनकर सारी जानकारियां पा जाते हैं। गांव- देहात में लोगों कर बात पहुंचाने का यह सशक्त माध्यम आज भी है। कभी पुराने घरों में रेडियो घर के एक सदस्य के समान होता था। कमरे में उसकी खास जगह थी और उसका कवर भी खास होता था। साइज छोटा हो या बड़ा इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था पर सबका चहेता था।
क्रिकेट मैच से लेकर गणतंत्र दिवस की परेड तक सभी कार्यक्रम रेडियो में बड़े चाव से सुने जाते थे। घर की महिलाएं घर के काम निपटाते हुए अपने पसंदीदा कार्यक्रमों को सुनती थीं। बच्चों को उच्चारण शुद्ध करने के लिए घर के बड़े रेडियो सुनने की सलाह देते थे। कितने ही लोग हैं जो बिना देखे उद्घोषकों की आवाज पहचान लेते थे। रेडियो सिलोन, विविध भारती को भला कौन भूल सकता है। रेडियो आज भी सुना जाता है पर चैनलों की बाढ़ के बीच पसंद ना पसंद सभी की अपनी-अपनी है। बेशक टेलीविजन के आने से लोग उसकी तरफ आकर्षित हुए ,पर रेडियो के कार्यक्रमों को सुनने का अपना ही आनंद है। आइए आज रेडियो दिवस पर अपनी पुरानी यादों को ताजा करें।
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