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हिमाचल में जब-जब भी सरकार के खिलाफ कर्मचारियों ने मांगों को लेकर आवाज उठाई। सरकार ने उनकी मांगें मान पर उन्हें शांत करवा दिया। कर्ज में डूबी सरकार ये नहीं सोच रही है कि ये मांगें पूरी कैसे होगी पैसा कहां से आएगा। जबकि यह भी सच है कि कर्मचारियों की अधिकांश मांगे वेतन या पेंशन से जुड़ी होती है। आय के साधन सीमित है और सिर पर कर्ज का बोझ है। परिवहन मंत्री BIKRAM THAKUR के आश्वासन के बाद बेशक हिमाचल प्रदेश परिवहन निगम ड्राइवर यूनियन ने अपनी हड़ताल स्थगित कर दी है, लेकिन सवाल यही कि 1500 करोड़ रुपए से ज्यादा के घाटे में डूब चुका HRTC प्रबंधन मौजूदा और रिटायर हो चुके कर्मचारियों की लगभग 800 करोड़ की देनदारी कहां से चुकाएगा। सच्चाई यह है कि HRTC की लंबे समय से आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपया जैसी स्थिति है। यानी इनकम कम तथा खर्चा अधिक होने से प्रत्येक महीने की सैलरी देना भी निगम के लिए मुश्किल हो गया है। कोरोना काल में दो साल तक बसें नहीं चलने से निगम को 750 करोड़ रुपए से अधिक की नुकसान झेलना पड़ा है। जब बसें चली तो कोरोना संक्रमण के डर से कम लोग बसों में बैठ रहे थे। अब प्रत्येक महीने निगम को 65 से 70 करोड़ की आय हो रही है, जबकि खर्चा 80 से 85 खर्च के बीच हो रहा है। इसकी मार निगम के लगभग 12 हजार कर्मचारी और 6500 के करीब पेंशनर पर पड़ रही है। सरकार भी इस उपक्रम को पर्याप्त वित्तीय मदद नहीं मिल रही है क्योंकि राज्य सरकार पर खुद लगभग 65 हजार करोड़ रुपए का कर्ज हो गया है।
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