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पाकिस्तान। आतंकवाद को पोषित करने में विश्व भर में बदनाम हो चुका पाकिस्तान जहां जर्जर अर्थव्यवस्था के कारण बुरी स्थिति में है, तो वहीं शिक्षा के मामले में इस देश की हालत पतली है। हाल ही की एक रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान विश्व का ऐसा दूसरा देश है, जहां के अधिकतर बच्चे स्कूल नहीं जा पाते। स्कूल ना जा पाने वाले बच्चों की संख्या इस देश में 2.03 करोड़ बताई जा रही है। विल्सन सेंटर एशिया प्रोग्राम की रिपोर्ट में यह बात सामने आई है। इस रिपोर्ट के अलावा पाकिस्तान (Pakistan) का भविष्य शिक्षा के मामले में इससे भी ज्यादा बुरे हालात का सामना करने वाला है, क्योंकि बताया जा रहा है कि वर्ष 2030 तक पाकिस्तान का हर चार में से एक बच्चा प्राथमिक शिक्षा (Primary Education) तक पूरी नहीं कर पाएगा।
विल्सन सेंटर की रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान में शिक्षा बजट में कोई कमी नहीं है, बल्कि यहां सबसे बड़ा बाहरी वित्त पोषित शिक्षा सुधार कार्यक्रम है और शिक्षा का बजट (Budget) भी 18 फीसदी बढ़ाया गया है, जो रक्षा बजट के बाद दूसरे नंबर पर है। पाकिस्तान में शिक्षा के गिरते स्तर का कारण बजट नहीं बल्कि पढ़ने और सीखने की कमी बताया जा रहा है। जो ना केवल इस देश के नीति निर्माताओं के लिए चिंता का विषय है बल्कि शिक्षा के लिए दान देने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं भी इससे परेशान हैं। तीसरे ग्रेड में पहुंचने के बावजूद यहां के आधे से कम छात्र उर्दू या अन्य किसी स्थानीय भाषा का एक वाक्य पढ़ने (Reading) में सक्षम हैं। इसका एक कारण शिक्षा में विदेशी भाषाओं का उपयोग भी माना जा रहा है। पाठ समझने में असफल रहने के चलते स्कूलों में ड्राप-आउट बढ़ रहा है। वहीं लड़कियों की हालत लड़कों से ज्यादा खराब बताई जा रही है। यहां की 120 छात्राओं में से महज एक ही ठीक से पढ़ या लिख पाने में समर्थ पाई गई। वहीं ब्रिटिश काउंसिल के एक सर्वे में तो यह भी पता चला है कि पंजाब में अंग्रेजी माध्यम के निजी सकूलों में 94 फीसदी शिक्षकों को खुद अंग्रेजी बोलनी नहीं आती है।
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