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उड़ीसा के पुरी में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र व देवी सुभद्रा को सुनै बैशा ( सोने की पोशाक)अनुष्ठान के दौरान 208 किलो सोने के आभूषणों से सजाया गया। पुरी में रथ यात्रा के अंतिम दिन इस अनुष्ठान के लाखों लोग गवाह बने। श्रद्धालुओं ने भगवान को आभूषण समर्पित करके अपना समर्पण दिखाया। इसकी साथ ही नौ दिवसीय लंबी वार्षिक रथयात्रा का भी समापन हुआ।
परंपरा के अनुसार देवी- देवताओं को रथ यात्रा की वापसी के बाद वाले दिन सोने के आभूषणों से सजाया जाता है और इस दौरान वह भगवान जगन्नाथ मंदिर के सिंह द्वार के सामने अपने-अपने रथ में आसीन रहते हैं। जगन्नाथ मंदिर प्रशासन (एसजीटीए) के विशेष अधिकारी के अनुसार देवी-देवताओं को करीब 208 किलोग्राम सोने के आभूषणों से सजाया गया। मंदिर की परंपरा के अनुसार देवी-देवताओं को साल में पांच बार सोने से सजाया जाता है। ऐसे चार समारोह मंदिर के अंदर होते हैं जबकि केवल ‘सुना बेशा’ अनुष्ठान 12वीं सदी के मंदिर के बाहर होता है।
विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर में हर साल यह रथ यात्रा आषाढ़ मास के शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि को रथयात्रा निकाली जाती है। इस दौरान न सिर्फ देश बल्कि विदेश से भी हजारों श्रद्धालु रथ यात्रा में हिस्सा लेने पहुंचते हैं। इसके अलावा भगवान जगन्नाथ के मंदिर की कई ऐसी परंपराएं हैं, जिन्हें बेहद महत्वपूर्ण माना गया है। इन्हीं में से एक परंपरा पताका (झंडा) बदलने की भी है जिसे देखने के लिए बड़ी संख्या में लोगों की भीड़ जुटती है। इस परंपरा के अनुसार एक व्यक्ति रोजाना मंदिर के शीर्ष पर जा कर पुरानी पताकाएं निकालकर नई पताकाएं फहराता है।
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