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सचिन ओबरॉय/पांवटा साहिब। हिमाचल-उत्तराखंड की सीमा पर आसम नमभूमि झील इस बार भी विदेशी मेहमानों की कलरव और अठखेलियों से गुलजार हो गई है। यहां नवंबर से दिसंबर महीने तक साइबेरिया सहित अन्य ठंडे इलाकों से पक्षियों की आमद रहती है। आसम वैटलैंड भारत में प्रवासी पक्षियों की पसंदीदा जगहों में से एक है। यह देश का पहला कंजरवेशन रिजर्व वैटलैंड है।
यहां 1965 से विदेशी मेहमानों की आवभगत के लिए खास इंतजाम किए जाते रहे हैं। इनके ठहराव से लेकर ब्रिडिंग तक के लिए उत्तराखंड वन विभाग विशेष इंतजाम करता है। रंग-बिरंगे विदेशी मेहमानों की सुरक्षा के लिए भी विभाग मुस्तैद है। यही कारण है कि हर साल यहां लगभग 55 प्रजातियों के 4000 से अधिक पक्षी प्रवास के लिए पहुंचते हैं। आसन वैटलैंड में विदेशी महमानों की भारी आमद, वोटिंग सहित यात्रियों के लिए रात्रि ठहराव से लेकर यात्रियों के खाने पीने तक की व्यवस्था है, लेकिन बावजूद इसके, पर्यटन विभाग यहां सैलानियों को आकर्षित करने में असफल साबित हो रहा है। सैलानियों का कहना है कि यहां यात्रियों के लिए इंतजाम और इस स्थल का प्रचार प्रसार नाकाफी है। पक्षी प्रेमियों का तो यहां तक कहना है कि विभाग पक्षियों के लिए इंतजामों की महज खानापूर्ति करता है, जिसकी वजह से यहां प्रवासी पक्षियों की संख्या में हर साल कमी होती जा रही है।
वहीं, दूसरी ओर वन विभाग यहां इंतजामों को लेकर गंभीर है। विभाग के आला अधिकारियों सहित बड़ी संख्या में वन कर्मी यहां सुरक्षा से लेकर आवभगत तक के इंतजाम में लगे हैं। इस बार आसन वैटलैंड में सुकार्व सहित बार हेडेड गीज, पर्पल स्वेप हेन, फेरिजिनस, पोर्चाड, मार्क हेरियरर, ब्राइन काइट, मार्टिन, स्वैलो रिंग फ्लोवर, नार्दन पिनटेल्स, इरोशियन विजन, कॉमन किंगफिशर, व्हाइड थ्रोटेड, किंगफिशर, पाइड किंगफिशर, रेड नेक्ड आईबीज, इंडियन पांड हेरोन, पर्पल हेरोन, ब्लैक विंग्ड सिल्ट, कॉमन कूट, कॉमन पोचार्ड, टफ्टेड, रूडीशेलडक, हार्नबिल, रेड क्रसडेट, मलार्ड, गैडवाल, ग्रे हेरोन, लिटिल ग्रेब, स्पॉट बिलडक, इंडियन कोरमोरेंटर, ग्रेट कोरमोरेंट आदि 55 प्रजातियों के 4 हजार से अधिक पक्षी पहुंचे हैं। इनको शिकारियों से बचाने के लिए यहां दिन रात गश्त भी शुरू कर दी गई है। विभागीय अधिकारी बताते हैं कि इन खास विदेशी मेहमानों के लिए वैटलैंड में हर साल विशेष इंतजाम किए जाते हैं। मौसम बदलने के बाद ही यहां तैयारियां शुरू की जाती है। वैटलैंड के भीतर टापुओं पर पक्षियों के घोंसलें बनाने के लिए यहां इनकी पसंदीदा विशेष धास और झाड़ियां लगााई जाती है। इसके भीतर प्रवासी प्रसव करते हैं और अपने बच्चों को वापस साईबेरिया तक उड़ने लायक बनाते हैं। वन विभाग के अधिकारी बताते हैं कि पक्षी यहां सुरक्षित और आरामदेय प्रवास कर सकें इसके लिए हर बार माकूल इंतजाम किए जाते हैं।
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