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नई दिल्ली। पिछले कुछ वर्षों में डाटा टेक्नोलॉजी में काफी परिवर्तन देखने को मिला है। 2जी से 3जी, 3जी से 4जी और अब 4जी से यह तकनीक 5जी (5G network) में कदम रखने जा रही है। हालांकि, इसे अभी मेनस्ट्रीम में आने में कुछ समय है, लेकिन अभी से ये कहा जा रहा है कि इससे हमारी ज़िंदगी पूरी तरह से बदल जाएगी। वहीं दूसरी तरफ ऐसा भी माना जा रहा है कि सिग्नल भेजने और कैच करने के लिए जो मोबाइल टावर/एंटेना लगाए जाते हैं उनके नज़दीक रेडिएशन की फ्रिक्वेंसी काफी होती है जो कि आदमी के स्वास्थ्य (health) को काफी नुकसान (damage) पहुंचाती हैं। तो ऐसे में तो 5जी में डेटा को तेज़ी से ट्रांसफर करने के लिए काफी ज्यादा टावर लगाने होंगे।
एक्सपर्ट्स इस बात से नहीं हैं सहमत, जानें उनकी राय
ज्यादा टावर लगाए जाने की वजह से लोग ऐसा मान रहे हैं कि अधिक टावर ज्यादा रेडिएशन छोड़ेंगे जो स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां खड़ी कर सकते हैं। हालांकि, एक्सपर्ट्स इससे सहमत नहीं हैं उनका कहना है कि अगर भारत रेग्युलेटरी अथॉरिटी द्वारा बनाए गए सुरक्षा उपायों का पालन करता है तो ऐसा कुछ नहीं होगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन भी इसको खारिज करता है। उसका कहना है कि रेडियो फ्रिक्वेंसी की वजह से सिर्फ एक ही प्रभाव पड़ेगा और वह है शरीर का तापमान बढ़ना। शरीर का तापमान बढ़ने से स्वास्थ्य को बहुत ज्यादा नुकसान नहीं होने वाला है। ऐसे ही एक एक्सपर्ट द्वारा बताया गया कि आदमी के शरीर को आयोनाइज़िंग नेचर वाली फ्रिक्वेंसी ही नुकसान पहुंचाती है जबकि मोबाइल से निकलने वाली फ्रिक्वेंसी नॉन आयोनाइज़िंग नेचर की होती है, जो कि शरीर को नुकसान नहीं पहुंचाती। अभी तक ऐसा कोई डेटा कलेक्ट नहीं हो पाया है कि जिससे पता चले कि 5जी रेडिएशन की वजह से स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचता है।
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