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कोई भी नई तकनीक वाला गैजेट हमारे पास आता है तो खुद तो शायद कम ही उसका उपयोग करते हैं हमारे बच्चे उसका ज्यादा उपयोग करते हैं। कहना न होगा कि हम भी अपनी जान छुड़ाने के लिए उन्हें दे देते हैं। गौरतलब है कि 12 साल से छोटे बच्चों पर मोबाइल या टेबलेट का प्रयोग करने का ज्यादा बुरा असर पड़ता है।
मोबाइल, सेलफोन और स्मार्ट फोन जैसी डिवाइस ने बच्चों में तकनीक की एक्सेसिबिलिटी और उपयोग को बढ़ा दिया है। बच्चों को इन्हें निजी उपयोग के लिए नहीं देना चाहिए क्योंकि यह लांग टर्म में बच्चों को नुकसान पहुंचा रहा है। दरअसल माता-पिता छुटकारा पाने के लिए उन्हें यह सब थमा देते हैं। उनका ख्याल है कि इससे बच्चे बिजी रहते हैं साथ ही वे स्मार्ट भी हो रहे हैं। हालात यहां तक पहुंचे हैं कि अब तो लोग इन्हें टोडलर्स के हाथों में भी देने लगे हैं। इससे बच्चों का विकास, व्यवहार और सीखने की क्षमता बुरी तरह प्रभावित होती है।
टेक्नोलॉजी का प्रभाव बड़ों की तुलना में 4-5 गुना तेजी से होता है और उनके स्वाभाविक विकास में बाधा डालता है। विकसित होते दिमाग पर टेक्नोलॉजी के ओवर एक्सपोजर से बच्चों की सीखने की क्षमता में कमी, पढ़ाई में ध्यान एकाग्र न होना, भोजन ठीक से न करना, आंखें खराब होना आम बात है। इसके अलावा हायपर एक्टिविटी और स्वयं को अनुशासित व नियंत्रित न रख पाने की समस्याएं पैदा होने लगती हैं। उनके मूवमेंट्स सीमित हो जाते हैं। ऐसे में शारीरिक विकास पिछड़ सकता है। शैक्षणिक क्षमता और योग्यता प्रभावित होती है।
इससे उनकी स्टडीज पर भी असर पड़ता है। वे मोटे हो जाते हैं ऐसे में उन्हें डायबिटीज और दिल के दौरे का भी खतरा रहता है। माता-पिता अपने बच्चों के टेक्नोलॉजी के उपयोग की निगरानी नहीं करते और काफी बच्चों को यह उनके बेडरूम में इस्तेमाल करने की खुली छूट मिली हुई है। इससे उनकी नींद प्रभावित हो रही है। डिप्रेशन, अटेचमेंट डिसआर्डर और उन्माद की शिकायत होती है। उसके बाद घर या स्कूल में उन्हें प्रॉब्लम चाइल्ड घोषित कर दिया जाता है।
मीडिया, टीवी और फिल्मों में जो हिंसा दिखाई जाती है इससे बच्चों में आक्रामकता बढ़ रही है तथा यह बच्चों के विकास को भी विकृत कर रही है। माता-पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चों को समय दें। उन्हें कुछ समय गैजेट से दूर रखें क्योंकि वे लगातार स्क्रीन को देखते रहते हैं। इसका रेडिएशन रिस्क भी होता है और आंखें खराब हो जाती हैं। ध्यान रखें एक बार में 30 मिनट से ज्यादा देर तक स्क्रीन नहीं देखने देना चाहिए।
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