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तीर्थन घाटी के अनोखे मेले और त्योहार सैलानियों को करते हैं आकर्षित
Last Updated on February 16, 2020 by
परस राम भारती/बंजार। हिमाचल प्रदेश की प्राचीनतम परंपराएं, मेले और त्योहार सांस्कृतिक विरासत की पहचान है। मेलों और त्योहारों के माध्यम से ही लोगों के आपसी संबंध मजबूत होते हैं। कुल्लू जिला की तीर्थन घाटी में भी अनेक मेलों और धार्मिक उत्सवों (Fairs and religious festivals) का आयोजन किया जाता है जो यहां की सांस्कृतिक समृद्धि को बखूबी दर्शाता है। तीर्थन घाटी के लोग सांस्कृतिक परंपराओं और मूल्यों को बनाए रखने के लिए प्रशंसा के पात्र हैं। तीर्थन घाटी के लगभग हर गांव में साल भर छोटे-छोटे मेलों का आयोजन होता रहता है। ये मेले और त्योहार यहां के लोगों के हर्ष उल्लास और खुशी का प्रतीक हैं। ये मेले और त्योहार सैलानियों को काफी आकर्षित करते हैं।
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फाल्गुन मास की संक्रांति के शुरू होते ही तीर्थन घाटी के कई गांव में फागली मुखौटा नृत्य का आयोजन किया जाता है। कुछ गांव में यह फागली उत्सव (Fagli Festival) एक दिन तथा कई गांव में दो और तीन दिन तक यह त्योहार धूमधाम और हर्षोल्लास से मनाया जाता है। यहां के लोग अपने ग्राम देवता पर अटूट आस्था रखते हैं। साल भर तक समय समय पर वर्षा, अच्छी फसल, सुख-समृद्धि या बुरी आत्माओं को भगाने के लिए लोग अपने ग्राम देवता की पूजा-अर्चना करते हैं। इसके पश्चात मेलों और त्योहारों का आयोजन करके भिन्न-भिन्न लोकनृत्य पेश करके नाच गाना करते हैं।
तीर्थन घाटी के मुखौटा उत्सव फागली में स्थानीय गांव से अलग-अलग परिवार के पुरुष सदस्य अपने-अपने मुंह में विशेष किस्म के प्राचीनतम मुखौटे लगाते हैं और एक विशेष किस्म का ही पहनावा पहनते हैं। हर गांव में पहने जाने वाले मुखोटों तथा पहनावे में कई किस्म की विभिन्नता पाई जाती है। फागली उत्सव के दौरान दो दिन तक मुखोटा धारण किए हुए मदहले हर घर व गांव की परिक्रमा गाजे-बाजे के साथ करते हैं तथा अंतिम दिन देव पूजा-अर्चना के बाद देवता के गुर के माध्यम से राक्षसी प्रवृति प्रेत आत्माओं को गांव से बाहर दूर भगाने की परंपरा निभाई जाती है। इस उत्सव में कुछ स्थानों पर स्त्रियों को नृत्य देखना वर्जित होता है क्योंकि इसमें अश्लील गीतों के साथ गालियां देकर अश्लील हरकतें भी की जाती है।
पहले दिन छोटी फागली मनाई जाती है जिसमें एक सीमित क्षेत्र तक ही नृत्य एवं परिक्रमा की जाती है और दूसरे दिन बड़ी फागली का आयोजन होता है जिसमें मुखौटे पहने हुए मंदयाले गांव के हर घर में प्रवेश करके सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। इसके अलावा इस उत्सव के दौरान पूरे गांव में कई प्रकार के पारम्परिक व्यंजन भी बनाए जाते है जिसमें चिलड्डू विशेष तौर पर बनाया व खिलाया जाता है। शाम के समय देवता के मैदान में भव्य नाटी का आयोजन होता है जिसमें स्त्री व पुरुष सामूहिक नृत्य करते है। बाजे गाजे की धुन के बीच इस नृत्य को देखने में शामिल हर बच्चे, बूढ़े, युवक व युवतियों के शरीर में भी अपने आप नृत्य की थिरकन सी पैदा होने लगती है।
हर वर्ष की भांति इस वार भी तीर्थन घाटी के गांव पेखड़ी, नाहीं, तिंदर, काउंचा, डिंगचा, सरची, जमाला, शिल्ली गरुली, फरयाडी, कलवारी, रंब्बी, शपनील और शिरीकोट आदि में फागली उत्सव बड़े धूमधाम और हर्षोल्लास से मनाया गया। सैकड़ों स्थानीय लोगों के अलावा कई देसी-विदेशी पर्यटकों ने भी इस उत्सव को देखने का खूब लुत्फ उठाया। कुछ पर्यटक इस पूरे मुखोटा नृत्य को अपने कैमरों में कैद करते रहे और कुछ ने स्थानीय लोगों के साथ नाटी में शामिल होकर नाचने के कई फेरे भी लगाए। तीर्थन घाटी के पर्यटन कारोबारी पंकि सूद का कहना है कि विश्व धरोहर तीर्थन घाटी में प्राकृतिक सुंदरता और संसाधनों के अलावा यहां की प्राचीनतम संस्कृति का खजाना भरा पड़ा है सिर्फ इसे संजोने और संवारने की आवश्यकता है। इनके अनुसार तीर्थन घाटी के मेले और त्योहार भी यहां पर पर्यटकों के आकर्षण का कारण बन सकते हैं। उन्होंने कहा कि घाटी में आ रहे पर्यटक यहां की प्राकृतिक सुंदरता और प्राचीनतम कला संस्कृति का ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर बखूबी प्रचार प्रसार कर रहे हैं और हर साल यहाँ पर पर्यटकों की आमद में बढ़ोतरी हो रही है।
दिल्ली से आए हिन्दी साहित्य के महशूर लेखक एवं कवि डॉक्टर मलिक राजकुमार का कहना है कि वे भारत सरकार सांस्कृतिक मंत्रालय के एक प्रोजेक्ट पावन पुनीत मेरी धरा पर कार्य कर रहे हैं जिसके लिए यह पूरे भारत वर्ष का भर्मण करेंगे। इस प्रोजेक्ट के लिए इन्होंने हिमाचल प्रदेश के कुछ अनछुए स्थलों को भी चुना है। इनका कहना है कि तीर्थन घाटी का प्राकृतिक सौन्दर्य यहां की वादियां और प्राचीनतम संस्कृति वहुत ही समृद्ध है। यहां पर पर्यटन की आपार संभावनाएं हैं जिसके बारे में यह अपनी किताब में लिखेंगे। इस प्रोजेक्ट के तहत तीर्थन घाटी उनका दूसरा पड़ाव है जो अभी तक इन्हें अन्य स्थानों की अपेक्षा बहुत ही उम्दा लगा। पेखड़ी गांव से देवता लोमश ऋषि के कारदार लाल सिंह का कहना है कि इस फागली उत्सव का आयोजन प्रतिवर्ष फाल्गुन सक्रांति के दौरान देव नारायण की पूजा अर्चना के पश्चात किया जाता है। मुखौटा नृत्य करके गांव से आसुरी शक्तियों को भगाया जाता है जिससे पूरे साल भर गांव में सुख समृद्धि बनी रहती है। प्रतिवर्ष समय समय पर गांव में इस प्रकार के अन्य मेलों का भी आयोजन होता रहता है।
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