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आपात काल की यादेंः जब डॉ बिंदल को डाला था कुरुक्षेत्र की जेल में
24 जून की रात्रि में जब भारत सोया तो भारत लोकतांत्रिक देश था। 25 जून, 1975 को प्रातःकाल जब सो कर जागे तो भारत देश का लोक तंत्र बदल चुका था, देश में आंतरिक आपात काल लगाया जा चुका था। इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थीं। इलाहबाद उच्च न्यायालय ने प्रधानमंत्री के खिलाफ फैसला दिया और उनकी संसदीय सदस्यता समाप्त कर दी थी। इंदिरा गांधी को पद से त्यागपत्र देना चाहिए था, परन्तु ऐसा नहीं हुआ। लोकतंत्र की हत्या की गई, त्यागपत्र देने की बजाए रात के अंधेरे में राष्ट्रपति से आदेश करवा कर देश में आंतरिक आपातकाल लागू कर दिया गया। अर्द्धरात्रि के मध्य देश के सभी बड़े-बड़े नेताओं को सोते-सोते उठा कर जेलों की काल कोठरी में डाल दिया गया, लगभग 5,0000 नेता एक रात में जेल में डाल दिए गए। प्रातः काल जब देश जागा तो अखबार बंद हो गए थे। मीडिया बंद हो गया था। सब तरफ पुलिस ही पुलिस विराजमान थी। जनता हैरान, परेशान थी। जनता जानना चाहती थी कि हुआ क्या है..? तब तक कांग्रेस पार्टी द्वारा अपनी गद्दी को बचाने के लिए देश को पूरी तरह जेल में तबदील कर दिया गया था। विद्ववानों की विद्वता, नेताओं की नेतागिरी, प्रशासन की कुशलता, धार्मिक जनों की भावनाओं, सभी को बंद कर दिया गया। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पर प्रतिबन्ध लगा कर सभी प्रचारकों को व श्रेष्ठ कार्यकर्ताओं को जेल में डाल दिया गया।
दो पन्नों का अखबार साइक्लोस्टाइल मशीन पर
मैं उन दिनों कुरूक्षेत्र में विद्यार्थी था। बीएएमएस की पढ़ाई कर रहा था। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का संस्कार कूट-कूट कर भरा था, संघ के आहवान पर एक अखबार निकालना शुरू किया। दो पन्नों का अखबार, साइक्लोस्टाइल मशीन पर छापा जाने लगा। प्रेस पर प्रतिबंध था, सेंसरशिप लगी हुई थी, जब वह पर्चे लोगों तक पहुंचने लगे, पुलिस हलचल में आई। सब ओर छापे पड़ने लगे। परन्तु पुलिस खाली हाथ थी। लोगों को लगातार खबरें मिल रही थीं। उस छोटे से पत्रक की डिमांड बढ़ने लगी तथा हर व्यक्ति की जुबान पर चढ़ गया था। पर्चा कहां छपता है, कौन छापता है, कौन बांटता है, सरकार बंसीलाल की थी। उनका भय, उनकी पुलिस का भय, और आतंक लोगों के सिर चढ़ कर बोलता था, फिर भी पर्चे छप रहे हैं, फिर भी बंट रहे हैं। जुलाई, अगस्त, सितम्बर, 1975 को यह काम चलता रहा। सख्ती बढ़ने लगी। एक-एक करके संघ के कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी की गई। उनके साथ थर्ड डिग्री की गई। एक, दो, तीन, चार, पांच, छह कार्यकर्ता में पकड़े गए। सातवां नंबर मेरा था। पुलिस की मार से रहस्य खुल गए थे। पुलिस मुझे ढूंढती मेरे कॉलेज पहुंची। बिना वर्दी के 250-300 पुलिस कर्मियों ने श्री कृष्णा आयुर्वेद मेडिकल कॉलेज घेर लिया, फिर क्या था, मुझे भी दबोचा गया, मुझे मेरे कमरे में ले जाया गया। एक गउशाला के पिछवाड़े में एक कमरा लेकर लोकतंत्र की रक्षा के लिए यह सभी काम चलता था। पुलिस को साइक्लोस्टाईल मशीन मिल गई, सभी पर्चे मिल गए। अब क्या था, पुलिस की बांछे खिल गई। हर पुलिस वाला अपने नम्बर लगाने के लिए थाने में मेरे साथ थर्ड डिग्री पर उतारू था। आज भी रूह कांप जाती है, जब स्मरण आता है। जमीन पर उल्टा लेटाकर एक पुलिस वाला दोनों हाथों पर पैर रखता था, दूसरा दोनों पैरों पर पैर रख कर चमड़े की छित्तर से कुल्हों की खाल उधेड़ देता था। पूछता था, कौन है तेरा बॉस। कौन देता है पर्चे, कौन तुझे जानकारियां देता है।
मोरारजी देसाई देश के प्रधानमंत्री बने
जवाब होता था कोई नहीं। मेरे घर में सोलन सूचना भेजी गई। तुम्हारा लड़का थाने में है। बड़े भाई डॉ. राम कुमार बिन्दल कुरूक्षेत्र आए, वहीं डॉ. राम कुमार बिन्दल जिनकी उंगली पकड़ कर हम संघ की शाखा में गए थे, वह अंडरग्राउंड रह कर संघ का कार्य करा रहे थे, थाने पहुंचे। मुझे हवालात में मिले और कहा कि देश की आजादी के लिए लाखों ने बलिदान दिया। अब लोकतंत्र की रक्षा का समय है, हिम्मत से लड़ना, माफी मांगनी होगी तो कभी घर मत आना। हमारी छाती चौड़ी हो गई। करनाल जेल में चले गए। पुलिस ने मामला बनाया था कि ये सात लोग कुरू़क्षेत्र विश्वविद्यालय को बम से उड़ाने का षडयंत्र कर रहे थे।डिफेंस इंडियन रूल( (डीआईआर) के अन्तर्गत मामला चला, साढ़े चार महीना करनाल जेल में काटा। स्मरण आते हैं वे दिन जब जय प्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवानी, चंद्र शेखर,मोहन धारिया, राज नारायण जैसा समूचा नेतृत्व जेलों में था। हम जैसे छोटे-छोटे कार्यकर्ता भी जेलों में थे। देश में तानाशाही का राज था। जनता की जुबान पर ताले लगे थे। बोलने की स्वतंत्रता समाप्त हो गई थी। आशा धूमिल हो चली थी कि अब कोई चुनाव भी होगा क्या। परन्तु लाखों कार्यकर्ताओं का त्याग, तपस्या बलिदान काम आया। चुनावों की घोषणा हुई चार राजनीतिक पार्टियां इकटठी हुई, भारतीय जनसंघ ने जनता पार्टी में अपना विलय किया और जनता पार्टी हलधर के चुनाव निशान के साथ बहुमत प्राप्त करके सत्ता में आई। मोरारजी देसाई देश के प्रधानमंत्री बने। अटल बिहारी वाजपेयी विदेश मंत्री, लाल कृष्ण आडवानी सूचना प्रसारण मंत्री बने। तानाशाही का अंत हुआ। लोकतंत्र की बहाली हुई। जनता जीती, लोकतंत्र जीता। इंदिरा हारी, तानाशाही हारी, कांग्रेस हारी।
-डॉ. राजीव बिन्दल, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष बीजेपी