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#AtalTunnel: विश्व की सबसे लंबी सुरंग देश को समर्पित; पॉइंट्स में जानें इसकी खासियत
कुल्लू। पीएम नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने शनिवार को रिब्बन काटकर सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण अटल टनल रोहतांग (Atal Tunnel Rohtang) का लोकार्पण कर इसे देश को समर्पित कर दिया। इस दौरान पीएम मोदी ने कहा कि इंजीनियरिंग का एक बेहतरीन नमूना अटल टनल है, इसका पता पूरे देश और दुनिया को होना चाहिए। बता दें कि इस टनल के निर्माण से जहां हिमाचल प्रदेश के वासियों को राहत मिलेगी। वहीं, देश-विदेश हिमाचल घूमने आने वाले पर्यटकों को भी इससे सुविधा मिल सकेगी। इसके अलावा सेना के लिए भी यह टनल अहम रोल अदा करेगी। तो आइये एक नजर डालते हैं, इस टनल के विस्तृत ब्योरे पर जिन्हें हमने पॉइंट्स से समझाने का प्रयास किया है:-
जानें अटल टनल की खासियत
1972 में पूर्व विधायक लता ठाकुर ने छह माह बर्फ में कैद रहने की समस्या से अवगत कराया तो पूर्व पीएम इंदिरा गांधी ने देखा था टनल बनाने का सपना।
वर्ष 2000 को अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने मित्र टशी दावा उर्फ अर्जुन गोपाल के निमंत्रण पर जून 2000 को केलांग पहुंच रोहतांग सुरंग निर्माण की विधिवत घोषणा की थी।
28 जून 2010 को सोनिया गांधी ने टनल का शिलान्यास किया। टनल के लिए 1355 करोड़ का बजट स्वीकृत किया गया।
करीब 10 हजार फीट की ऊंचाई पर बनी यह दुनिया की सबसे लंबी टनल है।
इसकी लंबाई 9.2 किमी है। इसे बनाने में 10 साल का वक्त लगा।
हिमालय की पीर पंजाल पर्वत रेंज में रोहतांग पास के नीचे लेह-मनाली हाईवे पर इस बनाया गया है।
इसका नाम पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर रखा गया है।
इस टनल के निर्माण में 2958 करोड़ रुपए खर्च आया।
इस टनल के निर्माण में 14508 मीट्रिक स्टील लगा और 2,37,596 मीट्रिक सीमेंट का इस्तेमाल हुआ है।
इस टनल के निर्माण में 14 लाख घन मीटर चट्टानों की खुदाई हुई।
हर 150 मीटर की दूरी पर 4-जी की सुविधा से इस टनल को लैस किया गया है।
60 मीटर पर हाइड्रेंट, हर 500 मीटर पर आपातकालीन निकास, प्रत्येक 2.2 किमी में वाहन मोड़ सकेंगे।
हर 1 किमी में हवा की गुणवत्ता चेक होगी। हर 250 मीटर पर सीसीटीवी कैमरे लगे हैं।
10.5 मीटर चौड़ी इस सुरंग पर 3.6 x 2.25 मीटर का फायरप्रूफ आपातकालीन निकास द्वार बना हुआ है।
‘अटल टनल’ से रोजाना 3000 कारें, और 1500 ट्रक 80 किलोमीटर की स्पीड से निकल सकेंगे।
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इस सुरंग से क्या होगा लाभ जानें
इससे मनाली और लेह के बीच की दूरी 46 किलोमीटर कम हो जाएगी और चार घंटे की बचत होगी।
टनल से मनाली और लाहुल-स्पीति घाटी 12 महीने जुड़े रहेंगे। भारी बर्फबारी की वजह से इस घाटी का छह महीने तक संपर्क टूट जाता है।
टनल का साउथ पोर्टल मनाली से 25 किमी है। वहीं, नॉर्थ पोर्टल लाहौल घाटी में सिस्सू के तेलिंग गांव के नजदीक है।
टनल से गुजरते वक्त ऐसा लगेगा कि सीधी-सपाट सड़क पर चले जा रहे हैं, लेकिन टनल के एक हिस्से और दूसरे में 60 मीटर ऊंचाई का फर्क है। साउथ पोर्टल समुद्र तल से 3000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है, जबकि नॉर्थ पोर्टल 3060 मीटर ऊंचा है।
यह टनल सेना से जुड़े कार्यों और सैनिकों के आवागमन के संबंध में बड़ी भूमिका निभाएगी।
इस टनल के निर्माण के बाद भारत सीमा पर चीन और पाकिस्तान के मुक़ाबले में सामरिक रूप से मजबूत हुआ है। सेना इस मार्ग से चीन से सटी सीमा लद्दाख और पाकिस्तान से सटे कारगिल तक आसानी से पहुंच जाएगी।
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