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22 साल पहले आज ही के दिन तोलोलिंग अभियान में गूंजा था विजय या वीरगति का नारा
Last Updated on June 13, 2021 by
मंडी / नगवाई। कारगिल युद्ध 1999 की वही लड़ाई थी, जिसमें पाकिस्तानी सेना ने अपना धोखेबाज चरित्र दिखाते हुए द्रास-कारगिल की पहाड़ियों पर भारत के विरुद्ध साजिश व विश्वासघात से कब्जा करने की कोशिश की थी। भारतीय सेना ने अपनी मातृभूमि में घुस आए घुसपैठियों को बाहर खदेड़ने को एक बड़ा अभियान चलाया। जिसमें भारतीय सेना के 527 रणबांकुरों ने अपने बलिदान से मातृभूमि को दुश्मनों के नापाक कदमों से मुक्त किया। जिनमें से 52 रणबांकुरे हिमाचल के सपूत थे। कैप्टन विक्रम बतरा को अदम्य साहस और पराक्रम के लिए मरणोपरांत देश के सर्वोच्च वीरता सम्मान ‘परमवीर चक्र’ से सम्मानित किया गया। सर्वोच्च वीरता सम्मान ‘परमवीर चक्र’ से सम्मानित राइफलमेन संजय कुमार, हिमाचल की बहादुरी व देशभक्ति का दूसरा जीवंत उदाहरण है। कारगिल युद्ध में प्रदान किए गये चार ‘परमवीर चक्र’ में से दो हिमाचल के वीरों के नाम आये। सेना के 1363 जांबाजों ने घायल होकर भी न केवल लड़ाई लड़ी बल्कि उसे अंजाम तक पहुंचाने में अपना योगदान दिया। कारगिल की यह लड़ाई दुनिया के इतिहास में सबसे उंचे क्षेत्र में लड़ी गई लड़ाई थी। करीब दो महीने तक चली इस लड़ाई में अंततः भारतीय सेना ने अपने गौरवशाली अतीत की याद दिलाते हुए पाकिस्तानी सेना को मार भगाया। देशवासी अपने प्राणों की आहुति सहर्ष देने वाले सैनिकों को याद कर उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करते है।
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बात 1999 की है जब पाकिस्तानी सेना घुसपैठिया बन भारतीय क्षेत्र में घुसी व कारगिल की ऊंची-ऊंची चोटियों पर कब्जा जमा लिया। यह अपने आप में पूरे विश्व में अनूठा युद्ध था जब एक और घुसपैठिए सैनिक 15 हजार फीट ऊंची पहाड़ियों की चोटी पर कब्जा जमाए बैठे थे, जिससे वे श्रीनगर-द्रास-कारगिल राष्ट्रीय राजमार्ग पर यातायात व सेना की रसद को आसानी से निशाना बना रहे थे। वहीं दूसरी ओर आनन-फानन में पहुंची भारतीय सेना नीचे सपाट मैदानों में थी। या यूं कहें भारतीय सेना पाकिस्तानी घुसपैठियों के लिए बहुत ही आसान टारगेट थी। भारतीय सेना के पास न तो घुसपैठियों की ताकत व संख्या की सही जानकारी थी, न ही ऐसे अभियानों में प्रयुक्त किए जानी वाले विशेष ड्रैस व दूसरे उपकरण थे। साथ ही इस अभियान में अधिकतर हमले माइनस तापमान वाली रातों में किए जाते थे। लेकिन इन विपरीत परिस्थितियों में भारतीय सेना ने अपनी शौर्य गाथा लिखी। भारतीय रणबांकुरों ने अपने प्राणों की परवाह न करते हुए उन पहाड़ों पर चढ़ाई की, पहाड़ रणबांकुरों के रक्त से रक्तरंजित होते रहे, परंतु अभियान नहीं रुका। रुका तो सिर्फ चोटियों पर कब्जा करने के बाद। उल्लेखनीय है, कि नरेन्द्र मोदी जी, जो उस समय हिमाचल भाजपा के प्रभारी थे, ने कारगिल पहुंच कर वीर सैनिकों की हौंसला अफजाई की थी।
सबसे पहले कब्जा जमाया था तोलोलिंग पर
ऐसी ही एक महत्वपूर्ण चोटी थी तोलोलिंग, यह वही पहली चोटी थी, जिस पर भारतीय सेना ने सबसे पहले कब्जा जमाया और यहीं से कारगिल की लड़ाई में एक नया मोड़ आया तोलोलिंग युद्ध का अभियान 20 मई 1999 को शुरू हुआ इसका जिम्मा 18 ग्रेनेडियर्ज को दिया गया। ब्रिगेडियर खुशाल ठाकुर अपनी स्मृतियों के पन्नों को पलटते आज भी उस अभियान को नहीं भूल पाते। अपनी यूनिट के साथ काश्मीर घाटी में आतंकवाद से लड़ रहे थे। उनकी यूनिट को तुरंत ही कारगिल बुलाकर इस अभियान में लगा दिया गया। वे भूल नहीं पाते कि वे किस प्रकार इस लड़ाई में उनके नेतृत्व में 18 ग्रेनेडियर्ज के बहादुरों ने कैसे अपना लोहा मनवाया था। कैसे 18 ग्रेनेडियर के तत्कालीन कमांडिंग ऑफिसर कर्नल खुशाल ठाकुर के आवाहन ‘विजय या वीरगति’ परी कमान के सर्वाधिक सैनिकों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी। तोलोलिंग पर कब्जा करने की कोशिश में 18 ग्रेनेडियर्ज के 4 अधिकारियों सहित 25 जवान शहीद हो चुके थे। यह एक अपने आप में बहुत बड़ी क्षति थी। वहीं 2 राजपूताना राईफल्ज के 3 अधिकारियों सहित 10 जवान शहीद हुए। कारण स्पष्ट था, ऊपर चोटी पर बैठा दुश्मन सेना की हर हरकत पर नजर रखे हुए था। और बड़ी आसानी से इस अभियान को नुकसान पहुंचाता रहा। सबसे पहले मेजर राजेश अधिकारी शहीद हुए एक बड़े नुकसान के बाद कर्नल खुशाल ठाकुर ने स्वयं मोर्चा संभालने की ठानी और अभियान को सफल बनाया। 13 जून 1999 की रात को 18 ग्रेनेडियर्ज व 2 राजपूताना राईफल्ज ने 24 दिनों के रात-दिन संघर्ष के बाद तोलोलिंग पर कब्जा किया, परंतु तोलोलिंग की सफलता बहुत महंगी साबित हुई, इस संघर्ष में लेफ्टिनेंट कर्नल विश्वनाथन बुरी तरह घायल हुए और अंततः कर्नल खुशाल ठाकुर की गोद में प्राण त्याग कर वीरगति को प्राप्त हुए। पहली चोटी ‘तोलोलिंग’ व सबसे ऊंची चोटी ‘टाईगर हिल’ पर विजय पताका फहराने का सौभाग्य कर्नल खुशाल ठाकुर व उनकी यूनिट 18 ग्रेनेडियर्ज को प्राप्त हुआ था। भारत के महामहिम राष्ट्रपति ने इस विजय व ऐतिहासिक अभियान के लिए 18 ग्रेनेडियर्ज को 52 वीरता सम्मानों से नवाजा, जोकि भारत के सैन्य इतिहास में एक रिकॉर्ड है। हवलदार योगेन्द्र यादव को देश के सर्वोच्च वीरता सम्मान ‘परमवीर चक्र’ से सम्मानित किया गया। इसके अलावा 2 महावीर चक्र, 6 वीर चक्र, 1 शौर्य चक्र, 19 सेना पदक, व दूसरे वीरता पुरस्कारों से नवाजा गया। साथ ही साथ ‘कारगिल थियेटर ऑनर’व ‘टाईगर हिल व तोलोलिंग बैटल ऑनर’ 18 ग्रेनेडियर्ज को दिए गये। कर्नल खुशाल ठाकुर को युद्ध सेवा मेडल से नवाजा गया।