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वक्त के थपेड़ों से बदहाल ये विधवा बुजुर्ग, ना किसी साथ है ना सहारा
शिमला। वक्त के थपेड़ों ने एक दृष्टिबाधित एवं मनोरोगी बुजुर्ग महिला स्वर्णा देवी के पास सब कुछ होते हुए भी दर-दर की ठोकरें खाने के लिए मजबूर कर दिया है। पति की मौत के बाद 10 बीघा जमीन, 4 कमरों का मकान, दो भाइयों और मां के जीवित होने के बावजूद वह दो वक्त की रोटी के लिए मोहताज है। बेहद जर्जर और असुरक्षित हो चुके मकान में रह रही इस बेसहारा बुजुर्ग महिला (Old Woman) के पास शौचालय, पेयजल और रसोई गैस जैसी बुनियादी सुविधाएं तक नहीं हैं। घर के चारों तरफ गंदगी और झाड़ियां दिखती हैं। वह नर्क से बदतर जीवन जीने पर मजबूर है।
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यह दुखद कहानी नारकंडा (Narkanda) के नजदीक जादौण पंचायत के गांव बटाड़ा की स्वर्णा देवी (60) की है। उनके पति मंगतराम की 25-30 साल पहले हुई मृत्यु से वह उभरी भी ना थी कि इकलौते बेटे की भी मौत हो गई। उन्होंने राजकीय प्राथमिक विद्यालय क्यारा में अंशकालिक जलवाहक के पद पर भी सेवाएं दीं, लेकिन सदमे ने उनका मानसिक संतुलन कमजोर कर दिया और वक्त के साथ नजर भी काफी हद तक जाती रही। शायद यही कारण था कि विद्यालय ने उनकी सेवाएं समाप्त कर दीं। अब उन्हें सिर्फ विधवा पेंशन का सहारा है। बिजली बिल का भुगतान न होने के कारण बिजली विभाग ने उनके जर्जर हो चुके मकान का कनेक्शन काट दिया। अब वहां अंधेरा पसरा रहता है। वह अपना खाना खुद नहीं बना सकतीं। दो वक्त पेट भरने के लिए पड़ोसियों पर निर्भर रहना पड़ता है। उनके भाई का कहना है कि वह स्वर्णा देवी को अपने पास लाए भी थे, लेकिन मानसिक संतुलन ठीक न होने के कारण वह परिवार में एडजस्ट नहीं हो सकीं।
उमंग फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रो. अजय श्रीवास्तव ने यह मामला सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव संजय गुप्ता के समक्ष उठाते हुए उनसे स्वर्णा देवी (Swarna Devi ) को तुरंत रेस्क्यू कराने और वृद्धाश्रम में भेजने के साथ ही उचित इलाज कराने का अनुरोध किया है। उनका कहना है कि इससे बुढ़ापे में असहाय महिला के मानवाधिकारों का संरक्षण हो सकेगा। संजय गुप्ता का कहना है कि वे इस मामले में उचित कार्रवाई करेंगे। दस दिन पहले प्रो. अजय श्रीवास्तव ने शिमला जिला प्रशासन से स्वर्णा देवी को रेस्क्यू कराने और वृद्ध आश्रम में भेजने का अनुरोध किया था। इसके बाद कुमारसेन के तहसील कल्याण अधिकारी को मौके पर छानबीन के लिए भेजा गया। उन्होंने अपनी रिपोर्ट भी शिमला भेज दी, लेकिन रिपोर्ट के कागज कहीं फाइलों में उलझे रह गए और बुजुर्ग महिला की जिंदगी अभी भी थपेड़े खा रही है।
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