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हिमाचल हाईकोर्ट की अंतरिम भरण पोषण मामले की टिपण्णी सबको जाननी चाहिए
शिमला। हिमाचल हाईकोर्ट (Himachal HighCourt) ने अंतरिम भरण पोषण को न्यायिक दृष्टि से महत्वपुर्ण ठहराते हुए इसे प्राथमिक उपचार देने जैसा बताया। कोर्ट ने यह बात प्रार्थी सुभाष चंद द्वारा दायर याचिका का निपटारा करते हुए कही। प्रार्थी ने ट्रायल कोर्ट के उन आदेश को चुनौती दी, जिसके तहत उसे अपनी पत्नी को 2000 रुपए मासिक भरण-पोषण देने के आदेश दिए गए थे।
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भूखमरी से बचाता है भरण पोषण
याचिका का निपटारा करते हुए न्यायाधीश अनूप चिटकारा ने कहा कि भरण पोषण दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी), 1973 के तहत एक त्वरित उपाय है। इसके तहत आवेदक को भुखमरी से बचाने के लिए सारांश प्रक्रिया द्वारा और एक परित्यक्त पत्नी या बच्चों द्वारा तत्काल कठिनाइयों से निपटने के लिए रखरखाव के माध्यम से कुछ उचित राशि सुरक्षित की जाती है।
अदालत ने बताया संवैधानिक उपाय
अदालत ने कहा कि यह उपाय संवैधानिक है क्योंकि यह एक जीवंत लोकतंत्र में एक कल्याणकारी राज्य की स्थापना की अवधारणा को पूरा करता है। जिसके तहत पत्नियों की रक्षा करके और बच्चों और उन्हें आवारापन से रोका जाना जरूरी है। इसलिए यह न्यायालयों के लिए उपयुक्त होगा कि उस व्यक्ति को उचित राशि का भुगतान करने के लिए अंतरिम आदेश जारी कर निर्देशित करें। जिसके खिलाफ सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण पोषण के लिए आवेदन किया गया है।
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