-
Advertisement
Lahaul में पुत्र प्राप्ति को खुलची पर चलाया बाण, Bhaga Valley में गोची उत्सव का शुभारंभ
Last Updated on January 21, 2020 by Deepak
केलांग। गोची (Gochi) नाम से प्रचलित त्योहार लाहुल-स्पीति जिला की भागा घाटी (Bhaga Valley of Lahaul-Spiti District in Himachal) में पुत्र प्राप्ति की खुशी में मनाया जाता है। ये उसी तरह है जैसे अन्य स्थानों में पुनर्जन्म के उपरांत मुंडन संस्कार मनाया जाता है। इस त्योहार में पहले दिन को बुजुर्गों द्वारा ग्योची तथा दूसरे दिन ग्योचा नाम दिया गया है। पहले दिन से उन घरों में मेहमान आने शुरू हो जाते हैं, जिन घरों में इस त्योहार का आयोजन होना होता है। इन दिनों गोची पर्व लाहुल-स्पीति के भागा घाटी में धूमधाम से मनाया जा रहा है। ये पर्व सात दिनों तक चलेगा। पर्व के दौरान गूर जिसे स्थानीय भाषा में लबदकपा भी कहा जाता है, अपने पारंपरिक लिवास चोलु तथा टोपी पहने उस घर में आ जाता है।
यह भी पढ़ें: Himachal में बर्फबारी से 100 सड़कों पर वाहनों की आवाजाही ठप, HRTC की आधा दर्जन बसें फंसी
लोअर केलांग (Lower Keylong) में थास परिवार से संबंध रखने वाला लबदकपा देवता की पूजा का कार्य करता है। वह अपने साथ धनुष बाण लेकर आता है। वहीं, सारी रात गांव वाले तथा रिश्तेदारों द्वारा केलंग वज़ीर नाम के देवता की पूजा की जाती है। इसी अवसर पर गरेग्स जो कि एक प्रकार का लोकगीत है उसे गाया जाता है। वहीं रात को ही किसी अन्य को गूर की तरह हार पहना कर लाउपा बनाया जाता है जो कि लबदकपा का शिष्य माना जाता है। दूसरे दिन प्रातः लोग घरों के बाहर इकठ्ठे हो जाते हैं। छांग, जो कि जौ से बनाया गया नशीला पेय पदार्थ है पी जाती है। लकड़ी की एक थाली में जौ के आटे से सत्तू बना कर रखे जाते हैं। उस थाली को चार-पांच व्यक्ति पास के देवस्थल तक ले जाते हैं।
पारंपरिक वस्त्रों एवं आभूषणों (Traditional Clothing and Jewelery) से सुसज्जित महिलाएं जिनको पुत्र प्राप्ति होती है, उनके साथ जाती हैं। उनके हाथों में छांग से भरे हुए बर्तन होते हैं। उनके पीछे दो व्यक्ति हाथों में देवदार की जलती हुई लकड़ी मशाल तथा भेड़ की खाल जिस पर देवदार की पत्तियां बंधी होती है, पहन कर चलते हैं। गांव के अन्य लोग भी देवस्थल तक जाते हैं। देवस्थल पहुंच कर लबदकपा धनुष और बाणों से पूजा करता है। उसके बाद सत्तुओ को तोड़ कर बांट दिया जाता है। उसके बाद मेमने की खाल में भूसा भर कर बनाए गए पुतलों को खुलची को देवता के समीप रखा जाता है। लबदकपा द्वारा चार मीटर की दूरी से निशाना लगाया जाता है। यह माना जाता है कि खुलची के ऊपर वाले भाग में निशाना बाण लगे तो आने वाले वर्ष में गांव के ऊपरी इलाके में पुत्र जन्म होगाए अगर किसी अन्य भाग में बाण लगे तो आने वाले वर्ष में उसी दिशा में पुत्र जन्म की आशा की जाती है।
बता दें कि अगर बाण किसी भी खुलची में ना लगे तो उस वर्ष गांव में पुत्र प्राप्ति नहीं होगी। इसी प्रकार इसके बाद सभी लोग वापस घरों को आ जाते हैं और रात भर ख़ुशी मनाते हैं। स्थानीय मदिरा का सेवन किया जाता है तथा रात भर खुशी में नाचते गाते रहते हैं। पुरुष और महिलाएं एक साथ पारंपरिक लोक नृत्य करते हैं और इसी प्रकार लोक गीतों और लोक धुनों से सारा वातावरण आनंदित हो जाता है और गोची त्योहार का समापन हो जाता है।