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रविन्द्र चौधरी/फतेहपुर। गरीबों के नाम से ना जाने कितनी योजनाएं शुरू हुईं और कितनी शुरू की जा रही हैं, लेकिन ये योजनाएं (Schemes) कितने पात्र लोगों तक पहुंच पाती हैं यह बड़ा सवाल है। अगर ये योजनाएं उन लोगों तक पहुंच पाती जो वास्तव में इसके हकदार है तो शायद गरीबी कब की मिट चुकी होती। शर्मनाक है कि हमारे देश की राजनीति गरीबी व गरीबों के नाम पर शुरू तो होती है, लेकिन गरीबों के विकास के लिए कुछ नहीं होता। हिमाचल प्रदेश के चंबा जिला (Chamba distt) से गरीबी की एक तस्वीर सामने आई है। जिला की सूरी पंचायत के पिशमा गांव के निवासी अमी चंद के परिवार को सरकार की किसी भी योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है।
हाल यह है कि अमी चंद के पास एक ही कमरा है जिसमें पांच बच्चों सहित अमी चंद ओर उनकी पत्नी तथा पांच मवेशी भी रहते हैं। उसका घर पूरी तरह से जर्जर हो चुका है। दीवारें गिरने की कगार पर है, जिसके चलते कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है। अमी चंद ने सरकारी मदद के लिए जगह-जगह गुहार लगाई, लेकिन उसकी गुहार को किसी ने नहीं सुना। एक कमरे में खाना बनता है और वहीं पर पशु भी बंधे है और वे लोग भी सोते हैं। कहने को तो हर घर को गैस कनेक्शन दिया गया है, लेकिन अमीचंद ने उसे शायद देखा भी नहीं।
अगर इसे विकास कहते हैं तो यही समझ लीजिए हिमाचल में विकास की एक तस्वीर है, गरीबी इतनी है कि दो वक्त की रोटी जुटाने के लिए अमीचंद को मजदूरी के लिए बाहर जाना पड़ता है। राज्य सरकार व केंद्र सरकार के नाम पर आवास योजनाएं चलाई जा रही हैं लेकिन शायद उन योजनाओं का रास्ता अमीचंद के घर से होकर नहीं गुजरता है। अमीचंद के परिवार का कहना है कि वह मवेशियों के साथ रहने को मजबूर है लेकिन सरकार की तरफ से किसी योजना का कोई लाभ नहीं मिला। एक तरफ हम खाना खाते हैं और दूसरी तरफ हमारे मवेशी खाना खाते हैं लेकिन हमारा घर इतना जर्जर हो चुका है कि कभी भी गिर सकता है और हमारी जान भी जा सकती है। उन्होंने सीएम जयराम से गुहार लगाई है उनकी मदद की जाए ताकि वे जिंदगी आराम से गुजार सके।
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