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अभिनेता यशपाल शर्मा बोले-फिल्म बनाने को आगे आएं Himachal के लोग
Last Updated on March 28, 2021 by Sintu Kumar
शिमला। हिमाचल (Himachal) में लोगों को फिल्म (Film) बनाने के लिए आगे आना चाहिए। फिल्म निर्माण प्रक्रिया एक टीम वर्क का हिस्सा है, जिसमें समन्वय व सहयोग नितांत आवश्यक है। दादालखमी फिल्म के संपर्ण निर्माण के लिए वो अपनी उस टीम के प्रति हमेशा कृतज्ञ भाव प्रकट करते हैं। रंगमंच फिल्म या कोई भी विधा तभी आगे बढ़ सकती है। अगर उसके प्रति सच्चा समर्पण, प्रतिबद्धता और संकल्पना के साथ कार्य किए जाए। यह बात विख्यात रंगकर्मी फिल्म, टीवी, वेब सीरिज अभिनेता यशपाल शर्मा (Actor Yashpal Sharma) ने कही। हिमाचल प्रदेश कला संस्कृति भाषा अकादमी के साहित्य कला संवाद कार्यक्रम में विश्व रंगमंच दिवस की संध्या पर विख्यात रंगकर्मी फिल्म, टीवी, वेब सीरिज अभिनेता यशपाल शर्मा ने अपनी रंगमंच यात्रा के संस्मरण सांझा किए।
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नाटक करना हो तो शिद्दत से करो
उन्होंने कहा कि नाटक (Play) करना हो तो शिद्दत से करो, बहाने या वजहों को बीच में लाकर नाटक जैसे उच्च कोटि के कार्य को हिनता प्रदान ना करें। उन्होंने कहा कि अगर नाटक हो सके तो करो ना हो सके तो ना करो। उन्होंने कहा कि नाटक का ही कमाल है कि अभाव में भी वो बेमिसाल काम करने का भाव पैदा करता है। उन्होंने कहा कि लेविश थियेटर करने को मिले तो अवश्य करो किंतु अगर परिस्थितियां विपरित हो तो परिस्थितियों से हटो नहीं बल्कि डटे रहो, यही रंगमंच का अनुशासन है। उन्होंने बताया कि रंगमंच में अपने किरदार में बने रहने के लिए हमें उस स्थिति व वातावरण के दायरे में रह कर उस अनुभूति को आत्मसात करना चाहिए ताकि मंच पर अभिनय कर हम दर्शकों तक असर छोड़ने में कामयाब हो सके। उन्होंने अपने जीवन के शुरूआती दिनों को याद करते हुए कहा कि ना जाने कब ट्यूशन (Tuition) पढ़ाते, ऑफिस में टाइप करते, चांदी की दुकान में काम करते फिर नाटकों की रिहसल फिर देर रात घर आकर दीवार फांद कर रूखा-सूखा खाकर सो जाना कैसे नाटकों की शुरूआत हुई कुछ पता ही नहीं चला। यह सिलसिला बढ़ता गया और रंगकर्म का काफिला चलता गया।
मुंबई आने वाले कलाकारों को सीख
मुंबई (Mumbai) आने वाले नवोदित कलाकारों को सीख देते हुए यशपाल कहते हैं कि मुंबई आओ किंतु धीरज, धैर्य व सब्र का समावेश कलाकार में होना आवश्यक है। यदि नवोदित कलाकार को काम ना मिले तो वो भावावेष में फंस जाता है। इससे उसके दिमाग पर विपरित प्रभाव पड़ता है। यशपाल कहते हैं कि ऐसे समय में अभिनेता को उस खाली समय का सदुपयोग करना चाहिए। ऐसे में अभिनेता अच्छा साहित्य पढ़े, अपने दिमाग को कुशाग्र करे तथा अच्छी फिल्मों का अवलोकन कर अपनी अभिनय क्षमता और व्यक्तित्व में निखार लाने का प्रयास करना चाहिए। शारीरिक दक्षता को प्रबल बनाकर आने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए अपने को तैयार करना चाहिए। उन्होंने कहा कि मुंबई में प्रत्येक काम के लिए हां के साथ-साथ अपने कार्य के दृष्टिकोण को सार्थक करने के लिए ‘ना’ कहने का साहस भी कलाकार को आना चाहिए। ओटीटी (OTT) पर जिस प्रकार से फुहड़ता और भद्दापन को प्रदर्शित किया जा रहा है, उसके प्रति उन्होंने नाराजगी जाहिर की। उन्होंने कहा कि इस पर लगाम लगाना जरूरी है और फिल्म निर्माताओं के तहत यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि नाटक मेरी रगों में रचा बसा संसार है, जो कभी भी मुझसे अलग नहीं किया जा सकता है।
कार्यक्रम का संचालन कर रही दक्षा शर्मा अनिल शर्मा का तो पता नहीं पर सुखराम करेंगे चुनाव प्रचार, क्या बोले आश्रय- जानिए ने अपने संवादों में मधुरता लाने और आंचलिकता के एक्सेंट को खत्म करने के लिए बतौर अभिनेता विभिन्न वाइस एक्सरसाईज और कथ्य के प्रति गंभीरतापूर्वक प्रयास व रियाज करने का मार्ग सुझाया जो अत्यंत सराहनीय था। कला संवाद की निरंतरता को बनाए रखने के लिए इस कार्यक्रम की रीढ़ की हड्डी हितेन्द्र ने भी कुछ रंगमंच और फिल्म के ज्वलंत मुद्दों को प्रभावी रूप से उठाया, जिसका यशपाल ने सहजता से जवाब दिया।