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जानिए अपनी रिटायरमेंट के बाद क्या फील्ड चुनते हैं सुप्रीम कोर्ट के जज
आपको शायद पता होगा कि भारत के मुख्य न्यायाधीश उदय उमेश ललित (Chief Justice Uday Umesh Lalit) आठ नवंबर को रिटायर हो जाएंगे। वह देश के 49वे मुख्य न्यायाधीश थे। उन्होंने अगस्त में सुप्रीम कोर्ट में कार्यभार संभाला था। इससे पहले वे देश के प्रसिद्ध वकीलों में शुमार थे। अब आपके मन में भी यह प्रश्न आता होगा कि रिटायरमेंट के बाद आखिर कैसे जीवन गुजारते हैं। उनकी जीवन शैली कैसे रहती है। तो आइए हम आज इसके बारे में बताते हैं। 65 साल की आयु में सुप्रीम कोर्ट के जज रिटायर हो जाते हैं। देश की शीर्ष अदालत का सबसे सीनियर जज (Senior Judge) ही आमतौर पर इस कुर्सी पर विराजमान होता है। रिटायरमेंट के पश्चात पूर्व मुख्य न्यायाधीश अपने-अपने तरीके से अलग-अलग क्षेत्रों को चुनते हैं। इसी फेहरिस्त में कुछ पूर्व जस्टिस राजनीति में आ गए तो कुछ विश्वविद्यालयों में चांसलर तक बन गए। वहीं एक जज तो ऐसे थे जिन्होंने राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने के लिए अपने पद से इस्तीफा तक दे दिया था। वहीं कुछ रिटायरमेंट के बाद किसी बंधन में नहीं बंधना चाहते हैं। अब तक देश कुल 49 ही सुप्रीम कोर्ट जस्टिस रहे हैं। अधिकतम जजों ने गैर विवादित भूमिकाओं को ही चुना है।
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यूयू ललित भी 08 नवंबर को अपने जन्मदिन रिटायर हो जाएंगे। आपको बता दें कि देश के दूसरे मुख्य न्यायाधीश बने पतंजलि शास्त्री (Patanjali Shastri) चेन्नई से संबंध रखते थे। वह करीब तीन साल तक पद पर रहे। जैसे ही वह रिटायर हुए तो उन्हें दिल्ली विश्वविद्यालय का प्रो वाइस चांसलर बना दिया गया। इसके अलावा वे कई बोर्ड में भी रहे। इसके बाद उन्होंने राजनीति में रुचि ले ली। इसके बाद वह मद्रास संविधान सभा के सदस्य बन गए। वह इस भूमिका में 1958 से 1962 तक रहे। वहीं सन 1959 में बिहार के बीपी सिन्हा (BP Sinha) भी चीफ जस्टिस बन गए। वह अपने पद पर 1964 तक रहे। मतलब वह चार साल तक अपने पद पर रहे। मगर रिटायरमेंट (Retirement) के बाद उन्होंने अपना जीवन आध्यात्मिकता और धार्मिकता के नाम कर दिया। उन्होंने अपने मन को पूजा-पाठ में लगा दिया। इसके बाद उनकी आंखों की रोशनी भी जाती रही। इसके बाद सन 1986 में पटना में उनका निधन हो गया। रिटायरमेंट के बाद कुछ जज विश्वविद्यालयों के वाइस चांसलर भी बने हैं। इस फेहरिस्त में सबसे पहला नाम गजेंद्रगडकर का था। उन्होंने अपने जीवन में कई पुस्तकें भी लिखीं। 1966 में रिटायर होकर मुंबई यूनिवर्सिटी (Mumbai University) के वाइस चांसलर बन गए। वहीं इसी प्रकार सन 1993 से लेकर 1994 तक मुख्य न्यायाधीश रहे एमएन वेंकट चलैया (MN Venkat Chalaiya) भी रिटायरमेंट के बाद सत्य साईं इंस्टीट्यूट ऑफ हाई लर्निंग के चांसलर बने। इसी फेहरिस्त में सन 1994 से लेकर सन 1997 तक एएम अहमदी भी सेवा निवृत्ति के बाद दो बार अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के दो बार चांसलर बने। वह दुनिया भर में लेक्चर देने जाते थे। वहीं इसी तरह से विश्वेश्वर नाथ खरे जब 2004 में रिटायर हुए तो झारखंड सेंट्रल यूनिवर्सिटी के चांसलर बने। 1968 से लेकर 70 तक सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रहे हिदातुल्लाह देश के उप राष्ट्रपति बने। उन्होंने कई महीने तक राष्ट्रपति का पदभार भी संभाला था। राष्ट्रपति का चुनाव लड़े और हार गए। के सुब्बाराव वर्ष मार्च 1966 में देश के मुख्य न्यायाधीश बने लेकिन करीब दस महीने बाद विपक्षी दलों ने जब उन्हें राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया तो उन्होंने पद से इस्तीफा दे दिया। हालांकि वो जाकिर हुसैन के खिलाफ ये चुनाव हार गए।
रंजन गोगोई रिटायर होने के बाद राज्य सभा में भी मनोनीत हुए। ये पहले जज थे राज्य सभा में पहुंचे थे। इससे पहले कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर चुनाव जीतकर रंगनाथ मिश्रा 1998 से लेकर 2004 तक राज्यसभा सदस्य रहे। रंगनाथ का परिवार ओडिशा में कांग्रेस की राजनीति से गहरे तक जुड़ा था । उनके पिता ओडिशा में कांग्रेस सरकार (Congress government in Odisha) में मंत्री भी रहे थे। बाद में देश के मुख्य न्यायाधीश बने दीपक मिश्रा उनके भतीजे हैं इससे पहले कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट के एक और जज बहारुल इस्लाम को राज्य सभा में भेजा था। देश के ज्यादातर रिटायर्ड चीफ जस्टिस ने पद से हटने के बाद किसी ना किसी तौर पर अलग अलग कमीशन के चेयरमैन का रोल स्वीकार किया । इसमें जस्टिस जेसी वर्मा से लेकर जस्टिस कमल नारायण सिंह और जस्टिस राजेंद्र मल लोढ़ा शामिल हैं। जस्टिस राजेंद्र मल लोढ़ा को रिटायर होने के बाद आईपीएल फिक्सिंग मामले में बीसीसीआई के ढांचे में आमूलचूल बदलाव के लिए संस्तुति करने वाले आयोग का चेयरमैन बनाया गया था।