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आहिस्ता-आहिस्ता बढ़ती हुई ग्लोबल वार्मिंग ने हिमाचल की जलवायु बदल दी है। इसका सीधा असर सेब की बागवानी पर पड़ेगा जो कि प्रदेश की आर्थिकी का मुख्य आधार है। इसी के साथ बंदरों ने कहर मचा रखा है और वे लगी लगाई फसल उजाड़ने में व्यस्त हैं। इस दोतरफा मार से हिमाचल के बच निकलने की कोई सूरत नहीं नज़र आती। हिमाचल का मुख्य व्यवसाय कृषि और बागवानी है। यहां के लगभग 9.14 लाख लोग किसान हैं। राज्य में कृषि भूमि केवल 10.4 प्रतिशत है इस पर भी 80 प्रतिशत भूमि वर्षाजल पर निर्भर है। जलवायु और परिस्थितियां यहां काफी अनुकूल रही हैं। इसलिए फल का उत्पादन करने वाले बागवानों को काफी मदद मिलती है। अब तक सेब, नाशपाती, आड़ू, खुबानी, नींबू,आम, लीची, अमरूद और झरबेरी का उत्पादन लगभग एक बड़े फल उद्योग में विकसित हो गया है। कृषि और बागवानी यहां की अर्थ व्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । यही नहीं, इससे 69 प्रतिशत कामकाजी आबादी को सीधे रोजगार मिलता है।सिर्फ सेब की बागवानी 1.7 लाख परिवारों की आजीविका का साधन है। ट्रांसपोर्टर, कार्टन निर्माता, कोल्डस्टोरेज, थोक मूल्य फल विक्रेता और फल प्रसंस्करण इकाइयों से जुड़े हजारों लोगों के हित इससे जुड़े हैं। सरकार के नेशनल हार्टी कल्चर मिशन ने भी बागवानी को काफी बढ़ावा दिया है।
भले ही हिमाचल की 75 फीसदी आबादी खेती से जुड़ी है, पर आज यहां के किसान खेती से भाग रहे हैं। अगर साफ कहें तो हिमाचल की आर्थिकी का मुख्य आधार सेब है और इस भी अब खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। आने वाले समय में ग्लोबल वार्मिंग सेब की पैदावार ले जाएगी और खेत बंदरों के हवाले हो गए हैं । आखिर हिमाचल इस खतरे का सामना कैसे और किस हद तक कर सकेगा…?
जलवायु में जो परिवर्तन हो रहा है वह परेशान करने वाला है। सेब प्रदेश की आर्थिकी का सबसे मजबूत घटक है और ग्लोबल वार्मिंग से हिमाचल के सेब को ही सबसे ज्यादा खतरा है। गर्मी से सेब के पौधे तेजी से सूख जाएंगे। फलों का स्वाद भी खट्टा या फीका हो जाएगा। अगर ग्लोबल वार्मिंग का असर हुआ तो 4.500 करोड़ की सेब बागवानी प्रभावित होगी। वैसे भी अनुमान लगाया जा रहा है कि मौसम के बदलाव के चलते प्रदेश में 2030 तक सेब का उत्पादन चार फीसदी घट जाएगा। दिसंबर और जनवरी में बर्फबारी न होने से सेब के लिए जो भी चिलिंग ऑवर्स हैं वे पूरे नहीं हो पा रहे हैं । इससे निचली सेब बेल्ट के बागबानों की फसल खराब हो सकती है। कमसे कम अलग-अलग किस्मों के सेब के पेड़ों को 7 डिग्री सेल्सियस से भी कम तापमान में 800 से 1800 घंटे तक रहना जरूरी होता है। हिमाचल में सेब का सालाना करोबार लगभग 3200 करोड़ का होता है।ये सेब शिमला, सिरमौर, कुल्लू, किन्नौर, मंडी और चंबा जिले में होते हैं। स्टोन फ्रूट तबाह करने के बाद अब मौसम की मार सेब पर है। प्रदेश के 5000 से कम ऊंचाई वाले इलाकों में सेब लगने की संभावनाएं लगभग खत्म हो गई हैं। दूसरी तरफ अच्छी फ्लावरिंग के लिए मौसम साफ और तापमान 14 डिग्री से 24 डिग्री तक होना चाहिए, पर ओला वृष्टि और तेज हवाओं से फूल झड़ जाते हैं और ये दोनों ही परेशानियां नियमित हो गई हैं। इकोनॉमिकसर्वे की रिपोर्ट के अनुसार 2017-18 में प्रदेश में सेब का उत्पादन कम हुआ है जबकि यह सेब उत्पादक राज्यों में है। नतीजा यह हुआ है कि इस समय बागवान बढ़ते तापमान और अनियमित बर्फबारी के कारण सेब छोड़कर, कीवी,अनार तथा सब्जियां उगाने लगे हैं।
आज बंदरों की कारस्तानियों की वजह से हिमाचल में खेती का जो हाल है उसे देखते हुए सवाल यह भी उठता है कि बंदर और इंसान में हमारे लिए महत्वपूर्ण कौन है ? एक किसान जो अथक परिश्रम कर खेती कर रहा है या फिर वे बंदर जो फसलों को लगातार नुकसान पहुंचा रहे हैं ? कृषि की बात करें तो मक्का, अदरक, आलू और मौसमी सब्जियां यहां की मुख्य फसलें हैं। मौजूदा हालात ये हैं कि इस समय हिमाचल की 2301 पंचायतें बंदरों से प्रभावित हैं। बंदर पहले तो मक्का और फलों को ही नुकसान पहुंचाते थे पर अब तो आलू-प्याज, शलगम जैसी सब्जियां और अरबी भी खोद कर खा जाते हैं। कुल मिलाकर बंदर रबी और खरीफ की फसलों का सालाना 350 से लेकर 375 करोड़ तक का नुकसान करते हैं। हालांकि नीलगाय, सुअर और खरगोश भी फसलें तबाह करते हैं, पर 70-80 फीसदी फसलों की बर्बादी के बंदर ही जिम्मेदार हैं। वे हर जगह दनदनाते फिर रहे हैं। किसान सदमे में है और खड़ी फसल बर्बाद करने वाले बंदर मस्त हैं। सोचने की बात है कि किसे बचना चाहिए बंदर या आदमी…?
वर्ष उत्पादन पेटियों में
2010 4,46,05,600
2011 1,37,51,763
2012 2,06,19,498
2013 3,69,36,172
2014 3,12,59,950
2015 3,88,57,300
2016 1,95,00,000
2017 2,02,24,838
वर्ष उत्पादन
2014-15 1607.88 मीट्रिक टन
2015-16 1634.05 मीट्रिक टन
2016-17 1745.02 मीट्रिक टन
2017-18 1645.35 मीट्रिक टन
वर्ष उत्पादन
2014-15 1576.45 मीट्रिक टन
2015-16 1608.55 मीट्रिक टन
2016-17 1653.51 मीट्रिक टन
2017-18 1154.00 मीट्रिक टन
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