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बुद्ध के संदर्भ में कहा जाता है कि एक बार आम्रपाली, जो महात्मा बुद्ध की समकालीन थी, उसने उन्हें भोजन पर आमंत्रित किया। उसने पूरी विनम्रता से महात्मा से अनुनय-विनय की कि वह उसके निवास पर आकर उसे अनुगृहीत करें। बुद्ध को क्यों आपत्ति होती, लेकिन उनके शिष्यों को ज़रूर मुश्किल आ गयी। बुद्ध ने तो सरलता से इसे स्वीकार कर लिया लेकिन शिष्य विरोध करने लगे।
आनंद तो पूरी मुखालफ़त पर उतर आया कि महात्मन् ! एक वेश्या, एक नगरवधू के यहां आपका जाना सही नहीं होगा, इससे समाज में गलत संदेश प्रचारित होगा………..लोग न जाने क्या-क्या सोचें कि आखिर महात्मा एक वेश्या के घर क्यों गए?
सहज भाव वाले गौतम बुद्ध मुस्कुराए……….एक क्षण आनंद को निहारा फिर शांत भाव से बोले कि आमंत्रण है तो इसमें वेश्या क्या और संन्यासी क्या………..जिधर भी प्रेम भाव से बुलावा आएगा हमें तो अवश्य स्वीकार करना होगा।
आम्रपाली बड़ी उत्सुकता से, बड़े आदरभाव से, बहुत ही विनम्रता से उनकी प्रतीक्षा कर रही थी। उसे यह डर ज़रूर था कि कहीं महात्मा उसके आमंत्रण को अस्वीकार न कर दें! एक सीधी-सादी छाया चांदनी रात में उसके द्वार पर प्रकट हुई…आम्रपाली के हृदय में आशा की उजास भर गई…उसे अपनी आंखों पर सहसा भरोसा नहीं हुआ।बुद्ध आए, मुस्कराते हुए आम्रपाली से उसके आतिथ्य के लिए धन्यवाद दिया और आम्रपाली अभिभूत सी निःशब्द उनको निहारती रही।.बुद्ध के तेज से आम्रपाली , आत्मचिंतन की अवस्था में आ गईऔर बड़े ही संकोच से उन्हें भोजन के लिए स्वागतकक्ष में ले गई….।
बुद्ध ने जिस शांति से एक कुलवधू के यहां भोजन ग्रहण किया वह दृश्य अद्भुत था आम्रपाली सब कुछ भूलकर बस बुद्ध के उस नैसर्गिक आभामंडल में लीन हो गई। तो यहां बुद्ध को उनके शिष्य भी नहीं समझ सके। बुद्ध की शरण में आया हुआ आतातायी भी बुद्ध हो जाता है और जो बुद्ध को ही बदल दे तो फिर वस्तुतः बुद्ध कहां? सहज जागरण की अवस्था को प्राप्त गौतम बुद्ध एक नगरवधू के प्रभाववश अपना बुद्धत्व खो बैठेंगे, ऐसा संदेह जताने वाले शिष्य अभी शिष्यत्व की पात्रता से कोसों दूर थे किंतु एक वेश्या, जो स्वयं बुद्ध को आमंत्रित करती है, वह उनके आभामंडल से घिर कर बुद्धत्व को प्राप्त हो जाती है, उसकी पात्रता संदेह से परे है।
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