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नादौन। दस मर्तबा राष्ट्रीय स्तर पर बॉस्केटबाल प्रतियोगिताओं (Basketball Competitions) में बेहतरीन प्रदर्शन कर चुकी इंदु बाला के हिस्से अगर कुछ आया है तो अनदेखी। हिमाचल प्रदेश के नादौन (Naduan)के गौना करोर की इंदु बाला (Indu Bala)आज अनदेखी के बीच जीवन-यापन करने को मजबूर है। ये वही इंदु है जिसने 15 मर्तबा राज्यस्तरीय प्रतियोगिता,लगभग 8 बार विश्वविद्यालय स्तर की राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेकर पहले पायदान को पकड़े रखा, लेकिन आज वह किसी भी पायदान पर नहीं है। इंदु बाला की माता चतुर्थ श्रेणी की कर्मचारी थी, उनके पिता का बचपन में ही देहांत हो गया था। पांच भाई-बहनों में सबसे छोटी इंदु बाला का बचपन से इस खेल के प्रति बहुत लगाव था। उनका बचपन बहुत ही संघर्षशील रहा कई बार उन्हें आर्थिक स्थिति ठीक ना होने के कारण मुश्किलों का सामना करना पड़ा, परन्तु इंदु बाला ने हिम्मत नहीं हारी।
वर्ष 2005 में चीन (China)में आयोजित अंतरराष्ट्रीय एशियन बास्केटबॉल प्रतियोगिता (International asian basketball tournament) में टीम के सदस्य के रूप में प्रदर्शन कर अपने को साबित कर चुकी हैं। उनका चयन दो बार राष्ट्रीय महिला बॉस्केटबाल टीम के प्रशिक्षण शिविर के लिए भी हो चुका है, उस समय उन्हें देश के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों में शुमार किया गया था । 2006-2007 में तत्कालीन सीएम वीरभद्र सिंह ने उन्हें हिमाचल केसरी के ख़िताब से नवाजा था और उन्हें सरकारी नौकरी का आश्वासन दिया था। लेकिन जब शिमला सचिवालय में जाकर इस बारे पूछा गया तो वहां उन्हें उत्तर मिला कि अंतरराष्ट्रीय खेल में स्वर्ण पदक लाओगे तभी नौकरी मिल सकती है। उसके बाद से इंदु बाला आज गुमनामी का जीवन व्यतीत कर रही हैं। उनके पास कोई रोजगार भी नहीं हैं, कई सरकारें आई और चली गईं लेकिन सबसे उन्हें मात्र आश्वासन ही मिले हैं। जिस सम्मान की वह हकदार वो थीं वो तो सरकार से नही मिला परन्तु कई गैर सरकारी संस्थान उनको सम्मानित कर चुके हैं। इंदु बाला बीए, बीएड,कंप्यूटर में डिप्लोमा तथा नेताजी सुभाष चन्द्र बोस खेल संस्थान पटियाला से बॉस्केटबाल में कोचिंग का डिप्लोमा भी कर चुकी हैं। 36 वर्षीय इस खिलाड़ी का सपना अब हिमाचल में खेल अकादमी (Sports Academy) खोलने का है ताकि वे उभरते हुए खिलाड़ियों की प्रतिभा को और निखार सके।
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