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बीजेपी का हिमाचल में प्रचार पार्टी अनुशासन नहीं, नाक बचाने के लिए मजबूरी
कांगड़ा। हिमाचल (Himachal) में विधानसभा चुनाव हैं। बीजेपी ने इन चुनावों में बाजी अपने पक्ष में करने के लिए पूरी ताकत ही झौंक दी है। अकेले पीएम नरेंद्र मोदी ने ही ना जाने कितने चक्कर हिमाचल के काट दिए हैं। बाकी मंत्रियों की फेहरिस्त भी लंबी है। जेपी नड्डा (JP Nadda) हिमाचल के ही हैं और मौजूदा समय में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं तो ऐसे में हिमाचल को हर हाल में बचाना उनका दायित्व भी है। देश के किसी भी स्टेट में चुनाव होते हैं तो बीजेपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के नाते जेपी नड्डा के कंधों पर जिम्मेदारी होती है। यह चुनाव तो अपने गृह राज्य में हो रहे हैं। ऐसे में अगर खुदा ना खास्ता बीजेपी को हार मिलती है तो बहुत बड़ी किरकिरी होगी। दूसरा केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर भी हिमाचल से हैं और पूर्व सीएम प्रेम कुमार धूमल (Prem Kumar dhumal) के बेटे हैं। ऐसे में जिम्मेदारी का भार और भी बढ़ जाता है। तीसरा बार-बार डबल इंजन की सरकार का राग अलापने वाली बीजेपी को तब भी बड़ा झटका लगेगा जब कांग्रेस बाजी मार कर ले जाती है। चूंकि केंद्र में बीजेपी सरकार है तो राग भी तब ही अलापा जा रहा है। दूसरी तरफ कांग्रेस के सिर पर हाथ रखने वाला कोई नहीं है। ना तो कांग्रेस केंद्र में है ना ही राज्य में। कांग्रेस का इतना बड़ा नेता भी हिमाचल से संबंध नहीं रखता है। कांग्रेस सिर्फ भले मानुष की तरह प्रचार अभियान में जुटी हुई है। स्टार प्रचारकों की उपस्थिति भी कुछ ज्यादा नहीं रही है। राहुल गांधी (Rahul Gandhi) भारत जोड़ो यात्रा में व्यस्त हैं। महज प्रियंका गांधी छिटपुट प्रचार कर रही हैं। ऐसी दशा में अगर कांग्रेस प्रदेश के चुनाव में सरकार बना लेती है तो बीजेपी के लिए यह एक बहुत बड़ा संदेश होगा कि जनता ने उन्हें नकारना शुरू कर दिया है। पहले चार राज्यों में जीत दर्ज करवाने पर बीजेपी जितनी खुश हुई उतनी ही ज्यादा चोट हिमाचल और गुजरात में हार मिलने से होगी।
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पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) स्वयं गुजरात से हैं। वह तीन बार वहां के सीएम भी रह चुके हैं। उन्हें गुजरात मॉडल का खूब नारा दिया। भले ही अंदर से गुजरात के हालात कैसे भी हों। चाहे विकास हुआ हो या ना हो। लोगों को रोजगार मिला हो या ना हो। सड़कें विकसित हुई हो या ना हों। मगर उन्हें गुजरात मॉडल का ऐसा नारा दिया कि वह सीएम से सीधे पीएम की गद्दी तक पहुंच गए। अब गुजरात (Gujarat) में भी हर हाल में जीत दर्ज करवाना उनके नाक पर बनी है। हालांकि जो खबरें छन-छन के आ रही हैं उनसे पता लग रहा है कि गुजरात में बीजेपी के हालात कुछ ज्यादा अच्छे नहीं हैं। यही कारण है कि आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल को वहां भारी जनसमर्थन मिल रहा है। रही-सही कसर मोरबी पुल हादसे ने निकाल दी है।
ऐसे में भूपेश पटेल की बीजेपी सरकार पर सवाल उठ रहे हैं कि इस पुल हादसे में मारे गए लोगों के लिए आखिर जिम्मेदार कौन है। ऐसे में पीएम मोदी की चिंता डबल बढ़ गई है। एक तरफ हिमाचल तो दूसरी तरफ गुजरात। स्थितियां संभाले नहीं संभल रही हैं। या यूं कहें कि इस वक्त बीजेपी के नाक पर तीर आया हुआ है, यह सब जनता जानती है। जनता यह भी जानती है कि विकास की बातें करने वाली बीजेपी के वीआईपी जैसे कि पीएम मोदी ही बार-बार हिमाचल आ रहे हैं और चुनाव प्रचार कर रहे हैं तो अंदर से बीजेपी की हालत कितनी पतली होगी। सभी वरिष्ठ नेताओं के पसीने छूटे हुए हैं। आराम के लिए एक पल भी नहीं मिल रहा है। जनता यह भी जानती है कि बीजेपी ने प्रचार अभियान में जितना पैसा उड़ाया है उतना अगर संभाल कर रखा होता तो शायद कर्ज लेने की जरूरत नहीं पड़ती। मेनिफेस्टो में भले ही दावे किए गए हैं मगर जनता के जहन में यह भी है कि ये दावे पूरे नहीं होंगे। जस्ट वोट बैंक की खातिर सारा प्रपंच है। हर दिन बीजेपी का बड़ा नेता हिमाचल में प्रचार को पहुंच रहा है। उसमें फिर रक्षामंत्री राज सिंह (Rajnath Singh) हों, गृहमंत्री अमित शाह (Amit Shah) हों या केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी या नितिन गडकरी हों। सभी ने हर जिले में अपनी कमार संभाली हुई है। उत्तर प्रदेश के सीएम भी प्रदेश में लगातार रैलियां कर रहे हैं। ऐसे में बीजेपी के लिए करो या मरो की स्थिति है। या यूं कह लें हिमाचल में बीजेपी का प्रचार ड्यूटी नहीं मजबूरी है।