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Dalai Lama की उपस्थिति में उनके निवास स्थान में Buddha Purnima पर बोधिचित्त समारोह आयोजित
मैक्लोडगंज। तिब्बतियों के धार्मिक गुरु दलाई लामा (Dalai Lama) की उपस्थिति में मैक्लोडगंज स्थित उनके अस्थायी निवास स्थान में बुद्ध पूर्णिमा पर बोधिचित्त समारोह (Bodhichitta ceremony) आयोजित किया गया। कोरोना वायरस की फैली महामारी के चलते दलाई लामा ने अपने निवास से पूर्णिमा के दिन बोधिचित्त समारोह के अवसर पर गौतम बुद्ध की शिक्षाएं दीं। उन्होंने बोधिसत्व प्राप्ति के 7 अभ्यास के बारे में विस्तारपूर्वक अनुयायियों को जानकारी दी। उन्होंने कहा कि धार्मिक बनने के लिए मन को शुद्ध करने की आवश्यकता है। मन तभी शुद्ध होगा, जब हम अपने अंदर के गलत विचारों को नष्ट कर बोधित्व को प्राप्त कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि भौतिक विकास से शारीरक सुख मिलता है। लेकिन मानसिक सुख करुणा, प्रेम और मैत्री से प्राप्त होता है। दलाई लामा ने कहा कि मनुष्य को दुखी बनाने का मूल कारक अविद्या है। शून्यता का ज्ञान होने से अविद्या का क्षय होता है।
बोधिचित्त की विस्तार से व्याख्या की
दलाई लामा ने प्रवचन (Preaching) में शून्यता का सिद्धांत, परहित, क्लेश, बोधिचित्त की विस्तार से व्याख्या की। सिर्फ शांति (Peace) की स्थापना और बोधिचित्त की प्राप्ति के लिए शून्यता का सिद्धांत जरूरी है। स्वयं ही बोधिचित्त का उत्पादन करें। अपने पराए सभी के हितों के लिए बुद्धत्व प्राप्त करना चाहिए। शून्यता के दर्शन से बुद्धत्व की प्राप्ति हो सकती है। परहित के लिए दयाए करुणा ज़रूरी है। यह बुद्धत्व से प्राप्त होता है। भगवान बुद्ध (Lord Buddha) ने कहा है कि धन से नहीं, बोधिचित्त का पाठ करने से लाभ मिलता है। धर्म का अभ्यास जरूरी है। जो लोग दुखी हैं, उनका दुख हाथों से नहीं हटाया जा सकता। इसलिए बुद्ध ने बोधि ज्ञान को समझा। आप खुद उनके मार्ग पर चलकर दुखों को दूर कर सकते हैं।
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स्वार्थी चित्त एक तरह की बुराई
दलाई लामा ने कहा चित्त में उत्साह रहने पर ही बोधिचित्त को प्राप्त कर सकते हैं। यह परहित से ही संभव है। क्लेश और अज्ञानता के कारण हम बुराइयों को जान नहीं पाते। स्वार्थी चित्त एक तरह की बुराई है। इससे क्लेश पैदा होती है। हमारे अंदर की बुराइयों को दूर करने के लिए चित्त में परिवर्तन लाना होगा। स्वार्थ की भावना का त्याग किए बिना सुख नहीं मिल सकता। द्वेष से बढ़कर कोई पाप नहीं है। क्रोध करने वाला सुखी नहीं रहता है। दुनिया में ज्यादा समस्याएं ईर्ष्या व बैर की वजह से हैं। इन्हें शून्यता के सिद्धांत से नष्ट किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि क्षमा से बढ़कर कोई पुण्य नहीं। हृदय में क्षमा का गुण होना चाहिए। धैर्य के अभ्यास का अवसर दुश्मन से ही मिलता है।