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पुनीत शर्मा/ चंबा। चंबा जिला के कबायली क्षेत्र भरमौर स्थित चौरासी मंदिर समूह में संसार का एकमात्र धर्मराज मंदिर है। इस मंदिर की स्थापना काफी प्राचीन है। वहीं चंबा रियासत के राजा मेरू वर्मन ने छठी शताब्दी में इस मंदिर की सीढिय़ों का जीर्णोद्धार किया था। नास्तिक हो या आस्तिक, धर्मराज के इस मंदिर में मृत्यु के बाद हर किसी को जाना पड़ता है। इस मंदिर में एक खाली कमरा है जिसे चित्रगुप्त का कमरा माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार चित्रगुप्त व्यक्ति के कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं।
मान्यता के अनुसार जब किसी प्राणी की मृत्यु होती है तब धर्मराज के दूत उस व्यक्ति की आत्मा को पकड़ कर सबसे पहले इस मंदिर में चित्रगुप्त के सामने प्रस्तुत करते हैं। चित्रगुप्त जीवात्मा को उनके कर्मों का पूरा लेखा-जोखा देते हैं। इसके बाद चित्रगुप्त के सामने के कक्ष में आत्मा को ले जाया जाता है। इस कमरे को धर्मराज की कचहरी कहा जाता है। गरुड़ पुराण में भी यमराज के दरबार में चार दिशाओं में चार द्वार का उल्लेख किया गया है। सदियों पूर्व चौरासी मंदिर समूह का यह मंदिर झाडिय़ों से घिरा था और दिन के समय भी यहां कोई व्यक्ति आने की हिम्मत नहीं जुटा पाता था। मंदिर के ठीक सामने चित्रगुप्त की कचहरी है और यहां पर आत्मा के उल्टे पांव भी दर्शाए गए हैं। मंदिर के पुजारी बताते हैं कि यहां पर अढ़ाई पौढ़ी भी है।
मान्यता है कि अप्राकृतिक मौत होने पर यहां पर पिंड दान किए जाते है। साथ ही परिसर में वैतरणी नदी भी है, जहां पर गौ-दान किया जाता है। इसके अलावा धर्मराज मंदिर के भीतर अढ़ाई सौ साल से अखंड धूना भी लगातार जल रहा है। यहां पर यमराज कर्मों के अनुसार आत्मा को अपना फैसला सुनाते हैं। इस मंदिर में चार अदृश्य द्वार हैं जो स्वर्ण, रजत, तांबा और लोहे के बने हैं। यमराज का फैसला आने के बाद यमदूत आत्मा को कर्मों के अनुसार इन्हीं द्वारों से स्वर्ग या नरक में ले जाते हैं। गरूड़ पुराण में भी यमराज के दरबार में चार दिशाओं में चार द्वारों का उल्लेख किया गया है। लिहाज़ा शिव की भूमि भरमौर में स्थित विश्व का यह एकमात्र मन्दिर अद्भुत धार्मिक मान्यताओं के साथ अकेला मन्दिर है जहां मौत के देवता यानी धर्मराज विराजमान हैं।
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