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Building Regularization : शिमला। राजधानी शिमला समेत अन्य शहरी इलाकों में भवनों के नियमितीकरण को लेकर लाई गई पॉलिसी पर उपनगरीय समन्वय समिति ने हमला बोला है। समिति ने कहा है कि इस पॉलिसी से आम जनता को कोई राहत नहीं मिली है। इस नीति के तहत लाभ केवल बिल्डरों को हो रहा है। जो भी भारी भरकम फीस सरकार की पॉलिसी के तहत रखी है वह केवल बिल्डर ही दे सकते हैं और वे यह फीस आगे उन लोगों से वसूल लेंगे, जिन्हें फ्लैट बेचे जाने हैं।
समन्वय समिति के अध्यक्ष चंद्रपाल मेहता और सचिव गोविंद चितरांटा ने कहा कि इस पॉलिसी में 5 लाख रुपए में बने भवन को नियमित करने के लिए 5 लाख रुपए से ज्यादा पेनल्टी देनी पड़ रही है। उन्होंने कहा कि आम आदमी इतनी भारी भरकम फीस नहीं दे सकता। इस संशोधित पॉलिसी की प्रक्रिया में लोग उलझकर रह गए हैं। भवन नियमित करने को लेकर भवन मालिकों से स्ट्रक्चरल स्टेबिलिटी सर्टिफिकेट मांगा जा रहा है और 40 वर्ष पहले बने भवन का स्ट्रक्चरल स्टेबीलिटी सर्टिफिकेट मांगना तथ्यों से परे है।
मेहता और चितरांटा ने कहा कि सरकार की पॉलिसी उन लोगों के लिए परेशानी का सबब बनी है जिन्होंने अपनी जमीनों पर भवन बनाए हैं। लेकिन शिमला के रूल्दु भट्ठा, कृष्णा नगर व बंगाला कालोनी में बने अवैध भवनों के लिए न तो सरकार की कोई नीति है और न ही उनपर कोई कार्रवाई की जा रही है, जबकि इन क्षेत्रों में बने भवन पूरी तरह से अवैध हैं। उन्होंने कहा कि रूल्दु भट्टा, कृष्णानगर और बंगाला कालोनी में बने भवनों में बिजली है और पानी है और वहां पर किसी भी विभाग द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की जाती। उन्होंने पूछा कि सरकार इन भवनों को लेकर क्यों मौन है। सरकार को सबसे पहले सरकारी जमीन पर बने इन अवैध भवनों पर कार्रवाई करनी चाहिए। जिन लोंगों ने अपनी जमीन पर भवन बनाए हैं, उन्हें क्यों तंग किया जा रहा है।
जहां हैं जैसे है के आधार पर हो भवन नियमित
समिति के नेताओं ने कहा कि सरकार को ‘जहां हैं जैसे हैं, के आधार पर भवनों को नियमित करना चाहिए और अव्यवहारिक और गैर जरूरी शर्तों को हटाना चाहिए। उन्होंने कहा कि शहरी विकास मंत्री बोलते कुछ हैं और करते कुछ और ही हैं। मंत्री को तो पता ही नहीं लगता कि क्या करना है। कांग्रेस मुख्यालय में शहरी विकास मंत्री ने कहा था कि जहां हैं जैसे हैं के आधार पर भवन नियमित होंगे और जब पॉलिसी आई तो उसमें कुछ और ही था। उन्होंने कहा कि पहले तो सीएम वीरभद्र सिंह ने भी उनकी मांग को सही बताया था, लेकिन बाद में वे भी पलट गए। उन्होंने काह कि सरकार की रिटेंशन पॉलिसी आम लोगों के लिए टेंशन बन गई है और सरकार को चाहिए कि जिन लोगों के भवन अपनी जमीन पर बने हैं उन से कम से कम फीस लेकर और शर्तों को कम कर भवनों को नियमित करना चाहिए।
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