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दुनिया भर में पापुलर भारत के चन्नापटना खिलौने, टीपू सुल्तान से है खास कनेक्शन
Channapatna Toys: कर्नाटक का एक छोटा-सा शहर है चन्नापटना। यह शहर लकड़ी के खिलौनों (Wooden Toys)के लिए मशहूर है। बेंगलुरु से लगभग 60 किलोमीटर दूर स्थित चन्नापटना के खिलौने ना केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी लोकप्रिय हैं। इसलिए चन्नापटना को गोम्बेगला ऊरु या खिलौनों के शहर (Toy Town)के नाम से जाना जाता है। यहां बनने वाले लकड़ी के खिलौनों को ही चन्नापटना टॉय कहा जाता है। यह अपनी बनावट और देसी अंदाज से विदेशी पर्यटकों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करते रहे हैं। इनकी पॉपुलैरिटी के कारण कई बार ये फिल्मों में भी नजर आते हैं। इतना ही नहीं खिलौने बनाने वालों का कनेक्शन मैसूर के किंग रहे टीपू सुल्न्तान से है।
बजट में भारत को खिलौने का हब बनाने का ऐलान
जाहिर है वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस बार बजट में भारत को खिलौने का हब बनाने का ऐलान किया है। इसके लिए सरकार ने योजना तैयार की है , खिलौना उद्योग के लिए मेक इन इंडिया (Make in India)के तहत लगाया जाएगा। अगर आप को याद हो तो सरकार का फोकस भारतीय खिलौने के बाजार को दुनिया का केंद्र बनाने पर है। इससे पहले पीएम मोदी भारतीय खिलौनों को बढ़ावा देने की बात कह चुके हैं। जहां तक चन्नापटना टॉय की बात है तो ये खिलौने दुनियाभर में भारत की पहचान बना चुके है।

टीपू सुल्तान ने बसाया खिलौने बनाने वालों को
चन्नापटना शहर को कर्नाटक (Karnataka)के खिलौनों का शहर कहा जाता है। यहां की आमदनी का स्रोत खिलौने ही हैं। कहते हैं 18वीं शताब्दी में टीपू सुल्तान को फारस से लकड़ी का एक खिलौना तोहफे में मिला था। उस तोहफे से सुल्तान इतना खुश हुए कि वहां के कारीगरों को हिन्दुस्तान बुलाया और यहां के कारीगरों को उस कला से रूबरू कराया। खिलौनों की कारीगरी को सीखने वाले इस शहर में बस गए और इस तरह खिलौनों का दायरा चन्नापटना से बाहर बढ़ने लगा। इसकी शुरुआत तो इन्हें हाथों से बनाने से हुई लेकिन धीरे-धीरे इन्हें मशीनों से बनाने का चलन शुरू हुआ है, हालांकि, आज भी यहां दोनों तरीकों से खिलौने बनाए जाते हैं।
खिलौनों के कारण GI Tag मिला
चन्नापटना खिलौने को लकड़ी से बनाया जाता है। ये हल्के होते हैं ताकि बच्चे आसानी से खेल सकें। पहले इसके लिए आइवरी वुड (Ivory Wood)का इस्तेमाल किया जाता था। इन्हें रंगने के लिए हल्दी और चुकंदर के पानी का इस्तेमाल किया जाता था, लेकिन अब इन्हें पेंट किया जाता है। वर्तमान में इन्हें देवदार, पाइनवुड, सागौन और गूलर की लकड़ी से तैयार किया जाता है। इन्हें अलग-अलग तरह का आकार दिया जाता है और फिर इन पर पॉलिश की जाती है। इन्हीं खिलौनों के कारण GI Tag भी मिला हुआ है। इनका इस्तेमाल खिलौनों के साथ शोपीस के तौर पर भी होता है। इन्हें बनाने में लकड़ी बर्बाद नहीं होती क्योंकि ये अलग-अलग आकार और डिजाइन में तैयार किए जाते हैं, यही वजह है कि ये खिलौने कारीगरों के लिए फायदे का सौदा साबित होते हैं।

इस बार बजट में योजना लाने की बात
चन्नापटना खिलौने की कीमत 30 रुपए से लेकर हजारों रुपए तक है। डिजिटल दौर में ई-कॉमर्स वेबसाइट भी अब इनके कारोबार को बढ़ाने का काम कर रही है। इना ही नहीं ये खिलौने अमेरिका, साउथ कोरिया, जापान, मिडिल ईस्ट और यूरोपीय देशों में एक्सपोर्ट किए जाते हैं। भारत का खिलौना बाजार दुनियाभर में बढ़ रहा है। भारत सरकार ने पिछले कुछ साल में भारतीय खिलौने के बाजार का दायरा बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए हैं। इस बार बजट में भी इनके लिए योजना लाने की बात कही गई है। इससे खिलौनों में भारत चीन के बाजार को टक्कर देता हुआ नजर आएगा।
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