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जिस शब्द में बीजाक्षर है, उसी को ‘मंत्र’ कहते हैं। किसी मंत्र का बार-बार उच्चारण करना ही ‘मंत्र-जप’ कहलाता है। हमारा जो जाग्रत मन है, उसी को व्यक्त चेतना कहते हैं। अव्यक्त चेतना में हमारी अतृप्त इच्छाएं, गुप्त भावनाएं इत्यादि विद्यमान हैं। व्यक्त चेतना की अपेक्षा अव्यक्त चेतना अत्यंत शक्तिशाली है। हमारे संस्कार, वासनाएं। ये सब अव्यक्त चेतना में ही स्थित होते हैं। किसी मंत्र का जब जाप होता है, तब अव्यक्त चेतना पर उसका प्रभाव पड़ता है। मंत्र में एक लय होती है, उस मंत्र ध्वनि का प्रभाव अव्यक्त चेतना को स्पन्दित करता है| मंत्र जप से मस्तिष्क की सभी नाड़ियों में चैतन्यता का प्रादुर्भाव होने लगता है और मन की चंचलता कम होने लगाती है। मंत्र जाप के माध्यम से दो तरह के प्रभाव उत्पन्न होते हैं। जो है मनोवैज्ञानिक प्रभाव और ध्वनि प्रभाव। मनोवैज्ञानिक प्रभाव तथा ध्वनि प्रभाव के समन्वय से एकाग्रता बढ़ती है और एकाग्रता बढ़ने से इष्ट सिद्धि का फल मिलता ही है। मंत्र जाप का मतलब है इच्छा शक्ति को तीव्र बनाना। जिसके परिणाम स्वरूप इष्ट का दर्शन या मनोवांछित फल प्राप्त होता ही है।
मंत्र अचूक होते हैं तथा शीघ्र फलदायक भी होते हैं। लगातार मंत्र जप करने से उच्च रक्तचाप, गलत धारणाएं गंदे विचार आदि समाप्त हो जाते हैं। मंत्र में विद्यमान हर एक बीजाक्षर शरीर की नसों को जाग्रत करता है, इससे शरीर में रक्त संचार सही ढंग से गतिशील रहता है। “क्लीं ह्रीं” इत्यादि बीजाक्षरों का एक लयात्मक पद्धति से उच्चारण करने पर ह्रदय तथा फेफड़ों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है तथा उनके विकार नष्ट होते हैं। जप के लिये ब्रह्म मुहूर्त को सर्वश्रेष्ठ माना गया है, क्योंकि उस समय पूरा वातावरण शान्ति पूर्ण रहता है, किसी भी प्रकार का कोलाहल नहीं होता। कुछ विशिष्ट साधनाओं के लिये रात्रि का समय अत्यंत प्रभावी होता है। गुरु के निर्देशानुसार निर्दिष्ट समय में ही साधक को जप करना चाहिए।
सही समय पर सही ढंग से किया हुआ जप अवश्य ही फलप्रद होता है। मंत्र जप करने वाले साधक के चेहरे से एक अपूर्व आभा आ जाती है। जप करने के लिए माला एक साधन है। शिव या काली के लिए रुद्राक्ष माला, हनुमान के लिए मूंगा माला, लक्ष्मी के लिए कमलगट्टे की माला, गुरु के लिए स्फटिक माला – इस प्रकार विभिन्न मंत्रो के लिए विभिन्न मालाओं का उपयोग करना पड़ता है। मानव शरीर में हमेशा विद्युत् का संचार होता रहता है। यह विद्युत् हाथ की उंगलियों में तीव्र होता है। इन उंगलियों के बीच जब माला फेरी जाती है, तो लयात्मक मंत्र ध्वनि तथा उंगलियों में माला का भ्रमण दोनों के समन्वय से नूतन ऊर्जा का प्रादुर्भाव होता है।
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