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लोकिन्दर बेक्टा/ शिमला। ठेकेदारों के बायकाट के साथ ही प्रदेश की राजधानी में विकास कार्य पर ब्रेक लग गई है। बहरहाल, जीएसटी के कारण पैदा हुई दिक्कत के चलते ठेकेदारों ने यहां कोई काम न लेने का ऐलान कर रखा है और इसके चलते टेंडर नहीं हो पा रहे हैं।
इस समय तो वैसे भी आदर्श चुनाव आचार संहिता लगी है, लेकिन इसके हटने के बाद यहां वार्डों में होने वाले कार्यों में तेजी लाई जानी है, लेकिन इसके लिए काम ठेकेदारों को अवार्ड होने जरूरी हैं। जीएसटी के मामले को सुलझाने को शनिवार को नगर निगम प्रशासन ने यहां इनके साथ बैठक रखी है। नगर निगम में काम करने वाले ठेकेदारों को जीएसटी के कारण दिक्कत हो रही है। इनकी मांग है कि जीएसटी के पड़ने वाले अतिरिक्त भार को टेंडर में शामिल किया जाए, लेकिन ऐसा नगर नगर निगम नहीं कर रहा। इसके चलते ठेकेदारों ने टेंडर न लेने का ऐलान कर इसका बहिष्कार कर रखा है।
इस समय शहर में केवल ही काम हो रहे हैं जो पहले अवार्ड हुए हैं और जीएसटी लागू होने के बाद जो टेंडर लगे थे वे अभी तक फाइलों में ही हैं। टेंडर न होने से शहर के 34 वार्डों में कामकाज प्रभावित हुए हैं और अब जीएसटी का मामला सुलझने के बाद ही इसे गति मिलने की उम्मीद है।
नगर निगम ने जीएसटी के इस विवाद को सुलझाने के लिए आज एक कार्यशाला रखी है। इसमें जीएसटी के एक्सपर्ट ठेकेदारों को इसके बारे में विस्तार से समझाएंगे और उसके बाद नगर निगम प्रशासन ठेकेदारों से बात करेंगे। इस दौरान ठेकेदारों की अन्य मांगों पर भी विचार हो सकता है। इनमे ठेकेदार को काम पूरा होने के बाद 15 दिन में पेमेंट करना भी शामिल है। ठेकेदारों का आरोप है कि निगम प्रशासन कई-कई माह तक बिलों को लटका कर रखता है। इनकी मांग है कि ईपीएफ को एस्टीमेट में शामिल किया चाहिए। लेबर सेस और वाटर चार्जेज को हटाने की भी इनकी मांग है। वहीं, पत्थर, रेत बजरी के लिए बिल की शर्त हटाई जाए। ठेकेदारों का कहना है कि जब तक उनकी सारी मांगें नहीं मानी जाती, वे काम नहीं लेंगे। ऐसे में अब होने वाली बैठक पर नजरें टिकी है। यदि यह बैठक ठीक रही तो शिमला शहर में नगरन निगम के काम को गति मिलेगी, अन्यथा विकास कार्यों के लिए और इंतजार करना पड़ेगा।
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