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शिमला। प्रदेश सरकार के उपक्रमों, यानी निगमों और बोर्डों से रिटायर हुए कर्मचारी मनरेगा में काम करने को मजबूर हैं। लेकिन 65 वर्ष की आयु पूरी होने के बाद वहां भी उन्हें काम नहीं मिल रहा है। ऐसे में अपना पूरा जीवन निगम या फिर बोर्ड में लगाने वाला कर्मचारी आज दो जून की रोटी को मोहताज हो गया है। राज्य सरकार द्वारा बोर्ड और निगमों के कर्मचारियों के रिटायरमेंट के बाद पेंशन न देने के कारण उनकी यह स्थिति बनी है।
इन रिटायर कर्मियों का गुबार अब निकलने लगा है। हर स्तर पर लड़ाई जीतने के बाद भी पेंशन नहीं लगने से निराश और हताश इन कर्मियों ने अब आर-पार की लड़ाई का मन बना लिया है। हिमाचल प्रदेश कारपोरेटर सेक्टर कर्मचारी समन्वय समिति ने आरोप लगाया है कि जब सीएम वीरभद्र सिंह ने 29 बार उन्हें आश्वासन दिया है कि उन्हें पेंशन मिलेगी, लेकिन न जाने अतिरिक्त मुख्य सचिव (वित्त) श्रीकांत बाल्दी उसमें रो़ड़ा क्यों बने हुए हैं। समिति ने यहां श्रीकांत बाल्दी के प्रति अपने आक्रोष को भी खुलकर साझा किया।
समन्वय समिति के समन्वयक गोविंद चतरांटा ने आज यहां प्रेस कांफ्रेंस में खुलकर आरोप लगाया कि एसीएस (वित्त) श्रीकांत बाल्दी जब से वित्त विभाग में बैठे हैं, तब से आज हर दसवां कर्मचारी कोर्ट में पहुंचा है। उन्होंने कहा कि सीएम उन्हें आश्वासन देते हैं कि आपको आपका हक मिलेगा, लेकिन श्रीकांत बाल्दी उस पर कुंडली मारकर बैठे हैं। वे खराब वित्तीय स्थिति का हवाला देते हुए आगे बात रखते हैं। उन्होंने कहा कि क्या खराब वित्तीय स्थिति केवल कर्मचारियों के लिए होती है। खराब वित्तीय स्थिति है तो हर दिन नए वाहन क्यों खरीदे जा रहे हैं और क्यों फिर बोर्ड-निगमों में चेयरमैन और वाइस चेयरमैन बिठाए हैं। उनका कहना था कि उनके लिए पेंशन को हर माह 3 करोड़ रूपए की जरूरत और बोर्ड और निगमों के अध्यक्ष और उपाध्यक्षों पर हर साल करोड़ों रुपए बहाए जा रहें हैं।
चतरांटा ने कहा कि राज्य में बोर्ड और निगम के 39072 रिटायर कर्मियों में से 32342 को पेंशन मिल रही है और केवल 6730 ही ऐसे बचे हैं, जो इससे महरूम हैं। उन्होंने कहा कि सबसे ज्यादा घाटे में बिजली बोर्ड है और उसके कर्मचारियों कों पेंशन मिल रही है।परिवहन निगम के कर्मचारियों को भी पेंशन दी जा रही है, लेकिन 20 बोर्ड-निगम ऐसे हैं, जिनके कर्मियों को यह लाभ नहीं मिल रहा। उनका कहना था कि पेंशन को लेकर वे कोर्ट से लड़ाई जीत चुके हैं,लेकिन इसके बाद भी सरकार उन्हें लाभ नहीं दे रही। सरकार के वित्त सचिव घाटे का रोना होते हैं और इसका ठीकरा केवल 6700 कर्मियों पर फोड़ा जा रहा है, जबिक घाटे के लिए राजनेता और अफसरशाही दोषी है।
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