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शिमला। केंद्र सरकार की योजना को लेकर माकपा दो दिन तक मंथन करेगी। इस दौरान रोजगार, श्रम मजदूरों की स्थिति, किसानों की दुर्दशा समेत कई मुद्दों को लेकर माकपा अपनी विशेष रणनीति बनाएगी। बताया जा रहा है कि केंद्र सरकार द्वारा नवउदारवाद की अपनाई गई नीति के दुष्प्रभाव पर भी चर्चा होगी। इसके साथ-साथ राज्य के राजनीतिक हालात पर भी विचार-विमर्श होगा। माकपा की शिमला इकाई का यह सम्मेलन 3 और 4 फरवरी को यहां होगा और इसमें 230 प्रतिनिधि हिस्सा लेंगे।
इस सम्मेलन में पिछले तीन वर्षों की राजनीतिक-सांगठनिक रिपोर्ट रखी जाएगी। इसमें विस्तार से राज्य व जिला में घट रहे राजनीतिक घटनाक्रमों और पिछले तीन वर्षों में पार्टी द्वारा की गई गतिविधियां शामिल होंगी। इसके साथ-साथ पूरे जिला से आए प्रतिनिधियों द्वारा अपनी रिपोर्ट रखी जाएगी। साथ ही अगले तीन वर्षों की सांगठनिक कार्ययोजना व संघर्ष की रूप रेखा तैयार की जाएगी। इस सम्मेलन में माकपा के राज्य सचिव डॉ. ओंकार शाद, विधायक राकेश सिंघा समेत पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेता हिस्सा लेंगे।
शिमला शहरी कमेटी के सचिव बलवीर पराशर ने कहा कि केंद्र व राज्य में सत्तासीन रही सरकारों द्वारा लागू की जा रही नवउदारवादी नीतियों का आम जनता के जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। इन नीतियों के चलते जीवन यापन की मूलभूत सुविधाओं जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार आदि प्रभावित हुए हैं।
उनका कहना था कि मूलभूत सुविधाओं का निजीकरण किया जा रहा है और ठेका प्रथा को बल दिया जा रहा है। इन नीतियों के चलते महंगाई दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। उन्होंने कहा कि इस सम्मेलन में इन नवउदारवादी नीतियों के चलते आम जनता पर पड़ रहे आर्थिक बोझ के खिलाफ भविष्य के लिए संघर्ष की योजना तैयार करेगा।
पराशर ने कहा कि इस जिला सम्मेलन में कई प्रस्ताव रखे जाएंगे। इनमें आज के दौर में शिक्षा की स्थिति, रोजगार व युवाओं की स्थिति, श्रम कानूनों में किए जा रहे बदलाव से मजदूरों की स्थिति और किसानों की स्थिति पर चर्चा की जाएगी। इसके अलावा सामाजिक न्याय व दलितों के मुद्दों पर, महिलाओं के मुद्दे आदि विषय शामिल होंगे। इन सभी प्रस्तावों पर चर्चा के बाद आगामी संघर्ष की रूपरेखा तैयार की जाएगी।
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