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शिमला। हिमाचल की अर्थव्यवस्था में सेब का कारोबार 4 हज़ार करोड़ से ज़्यादा का है। लेकिन अफ़सोफ बागवानी विभाग( Horticulture department) की सुस्त कार्यप्रणाली बागवानों पर भारी पड़ रही है। बागवानों के लिए देश- विदेश से करोड़ों की परियोजनाएं आ रही है। बावजूद इसके धरातल पर कुछ नहीं हो रहा है। ये हम नहीं बल्कि शिमला के बागवान अपना दर्द बयां कर रहे है। दरअसल बुधवार को बागवानी विभाग ने शिमला के एक आलीशान होटल में बागवानों के लिए एक वर्कशॉप( workshop) रखी, जिसको लेकर बागवानों की नाराज़गी साफ तौर से देखने को मिली।
बैठक के दौरान कोटगढ़ के बागवान दीपक सिंघा ने कहा कि होटल में वर्कशॉप लगाना बेमानी है। बागवानों की धरातल पर अपनी दिक्कतें है, जिनसे बागवानी विभाग का दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है। विभाग के वैज्ञानिक न तो हिमाचल की भोगौलिक परिस्थितियों के मुताबिक कोई शोध कर रहे है न ही उनके अनुसार सेब की आधुनिक किस्मों पर काम कर रहे है। जो वास्तव में बागवान है वह तो 365 दिन अपने खेतों में व्यस्त रहते है।
होटलों की बैठकों में तो माल रोड के बागवान आते हैं। उधर बागवान संदीप व नरेश कहते है कि अब बागवानी पर लागत ज़्यादा व मुनाफ़ा कम हो रहा है। बगीचों के सेब के पेड़ काफ़ी पुराने हो चुके हैं। इसलिए विभाग से सेब के पौधे मांगे जाते हैं तो 100 मांग के बदले 25 ही पौधे मिलते है। बागवानी विभाग को ग्रामीण स्तर पर कमेटियां गठित कर बागवानों की समस्याओं के आधार पर हल खोजने चाहिए। ताकि सेब की फ़सल पर मंडला रहे संकट के बादल छंट सके।
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