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देहरादून। रक्षाबंधन को भाई-बहन के बीच अटूट प्यार का त्योहार माना जाता है, लेकिन उत्तराखंड (Uttarakhand) के एक गांव में इस दिन खून की नदियां बहती हैं। यह एक ऐसा उन्मादी खेल है, जो तब तक चलता है जब तक एक आदमी के बराबर खून नहीं बह जाता। स्थानीय भाषा में अछ्पुत बग्वाल नाम का यह खेल जिला मुख्यालय चंपावत से 40 किलोमीटर दूर दूवीधूरा गांव में मां बाराही देवी के मंदिर के पास खेला जाता है।
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बग्वाल का मतलब है पत्थरों से खेला जाने वाला युद्ध। चार खामो और 7 थोक के लोग एक-दूसरे पर निशाना साधकर पत्थर चलाते हैं। मैदान (Ground) के चारों ओर वीर रस से ओतप्रोत गीत बजते हैं। पत्थरों की मार से बचने के लिए लोग अपने हाथ में बांस के फर्रे लिए होते हैं। फिर भी पत्थरों की चोट से लोग घायल होते हैं और खून भी बहता है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। पत्थरबाज टोलियों को वीर कहा जाता है। एक खेल में एक साथ बहुत से पत्थर चलते हैं जिससे आसपास खड़े तमाशबीन भी बड़ी संख्या में घायल होते हैं।
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