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भारत एशियाई संस्कृति का पालना है। श्री लंका, भूटान, नेपाल, म्यांमार, चीन, से लेकर थाईलैंड, कम्बोडिया, मलेशिया, इंडोनेशिया, कोरिया तथा जापान की संस्कृति में भारत की अमिट छाप आज भी दिखाई पड़ती है। कंबोडिया के पीएम हुन सेन इस बार गणतंत्र दिवस पर भारत के अतिथियों में शामिल थे। कंबोडिया का पहली से छठी सदी का समय फूनान राज्य से जाना जाता है, जिसके भारत तथा चीन से समुद्री व्यापार के ऐतिहासिक प्रमाण हैं। इसी दौरान भारतीय संस्कृति का प्रभाव वहां के स्थानीय ख्मेर समाज पर गहराई से पड़ा।
कंबोडिया का क्लासिकल स्वर्णिम काल-(802-1431) है, जिसे अंकोर काल भी कहा जाता है। इस खमेर राजवंश की स्थापना राजा जयवर्मन-2 ने की। उन्होंने अपने आपको चक्रवर्तीं सम्राट घोषित किया और शैलेन्द्र तथा श्रीविजय साम्राज्य से मुक्ति हासिल की। इस वंशावली के राजाओं ने अनेक हिन्दू मंदिर बनवाए जो भगवान शिव तथा विष्णु को समर्पित थे। इसी वंश के राजा जयवर्मन-7 ने बौद्ध धर्म को अपनाया तथा अनेक बौद्ध मंदिरों जैसे बेयोन आदि का निर्माण किया। बेयोन के स्तम्भों पर बने अनेक मुख बरबस ही खींचते हैं। राजा जयवर्मन-7 द्वारा 1190 में निर्मित ये मंदिर बौद्ध धर्म को समर्पित है। उसके बाद हिंदू धर्म का प्रभाव कम होते होते समाप्त हो गया तथा कंबोडिया पूर्णरूपेण एक बौद्ध देश बन गया।
अंकोरवाट इन सभी मंदिरों में सबसे भव्य, सबसे बड़ा और सबसे प्रसिद्ध मंदिर है। भगवान विष्णु को समर्पित यह मंदिर राजा सूर्यवर्मन द्वितीय ने बारहवीं सदी में निर्मित किया था, हालांकि अब यह बौद्ध मंदिर है। खमेर स्थापत्य का सर्वश्रेष्ठ उदहारण है। अंकोरवाट के विषय में 13वीं शताब्दी में एक चीनी यात्री का कहना था कि इस मंदिर का निर्माण महज एक ही रात में किसी अलौकिक सत्ता के हाथ से हुआ था। वास्तव में इस मंदिर का इतिहास बौद्ध और हिन्दू दोनों ही धर्मों से बहुत निकटता से जुड़ा है। कंबोडिया में बौद्ध अनुयायियों की संख्या अत्याधिक है इसलिए जगह-जगह भगवान बुद्ध की प्रतिमा मिल जाती है। लेकिन अंगकोर वाट के अलावा शायद ही वहां कोई ऐसा स्थान हो जहां ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों की मूर्तियां एक साथ हों।
इस मंदिर की सबसे बड़ी खास बात यह भी है कि यह विश्व का सबसे बड़ा विष्णु मंदिर भी है। इसकी दीवारें रामायण और महाभारत जैसे विस्तृत और पवित्र धर्मग्रंथों से जुड़ी कहानियां कहती हैं। बौद्ध रूप ग्रहण करने के काफी साल बाद तक इस मंदिर की पहचान लगभग खोई रही लेकिन फिर एक फ्रांसीसी पुरात्वविद की नजर इस पर पड़ी और उसने फिर से एक बार दुनिया के सामने इस बेशकीमती और आलीशान मंदिर को प्रस्तुत किया। चारों ओर से घेरे हुए लम्बे लम्बे गलियारे उस समय की अदभुत शिल्प कला की भव्य धरोहर हैं। महाभारत, रामायण तथा पुराण की कथाओं का विस्तृत उत्कीर्णन, वह भी भारत से इतनी दूर, मन में आनंद के भाव जगाता है।
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