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मुंदगोड। तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा ने कहा है कि हम निर्वासन में अपनी आजीविका को सुरक्षित करने के लिए नहीं बल्कि संस्कृति और परंपराओं के संरक्षण के लिए आए। क्योंकि हम अपनी पहचान को संरक्षित करने का इरादा रखते थे इसलिए हमने अपनी खुद की बस्तियों को बनाने में सक्षम होने के लिए कहा। हमने अलग-अलग स्कूलों की स्थापना के लिए भी मदद मांगी ताकि हमारे बच्चे अपनी भाषा और संस्कृति और साथ ही आधुनिक शिक्षा प्राप्त कर सकें।
तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने हमारे अनुरोधों को पूरा करने के लिए बहुत सी व्यक्तिगत जिम्मेदारी ली। यह बात दलाई लामा ने मुंदगोड में करीब दस हजार तिब्बतियों को सार्वजनिक तौर पर कही। कार्यक्रम में करीब 5000 भिक्षु, 200 नन, 400 स्कूली बच्चों के साथ 8500 लोगों के अलावा 1500 अन्य बस्तियों से आए लोगों ने दलाई लामा के उपदेश सुने।
दलाई लामा ने कहा कि आज बौद्ध धर्म दुनिया भर को आकर्षित कर रहा है। यही वजह है कि हमें अपनी संस्कृति और परंपराओं के संरक्षण का काम निरंतर करते रहना होगा। उन्होंने अपने उपदेश में व्यापक दृष्टिकोण से समस्याओं को हल करने के लिए मन की शांति विकसित करने के महत्व पर जोर दिया।
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