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कोरोना काल में बेटियां बनी सहारा
Last Updated on October 21, 2020 by Sintu Kumar
कांगड़ा। आज हम आपके लिए लेकर आए हैं एक ऐसी कहानी जो हर उस शख्स के लिए सबक है, जो बेटियों को बोझ समझते हैं। यह कहानी उदहारण है इस बात का कि हमारी बेटियां बेटों से बिल्कुल कम नहीं हैं। कहना गलत न होगा कि बेटियां ही है जो हर मुश्किल वक्त में हमेशा अपनों की मदद के लिए तैयार रहती हैं उनका सबल बनती है। माता-पिता दुखी है….. परेशान है तो ये बेटियां ही है जो कदम आगे बड़ाकर उनका सहारा बनती है उनके हाथ थाम लेती है।
यह कहानी है कांगड़ा के एक सीवरेज मैन मंगल दास की जो अमृतसर के रहने वाले हैं लेकिन पिछले 24-25 वर्षों से हिमाचल में रहे हैं। करीब 6 महिने पहले उनके रिश्तेदार की मौत पर अमृतसर जाना पड़ा लेकिन उन्हें क्या पता था कि कोरोना का ऐसा कहर बरपेगा कि सारे देश में लॉकडउन लग जाएगा। इस बीच मंगल दास के लिए हिमाचल लौटना तक मुश्किल हो गया। और बिना किसी काम धंधे के वहां भी रहना दिन प्रति दिन मुश्किल हो रहा था । तभी वहां बियाही उनकी बेटियां उनका सहारा बनी करीब 7 महिनों तक बेटियों ने पिता का हर छोटा बड़ा खर्च उठाया, उनका खयाल रखा और अपना फर्ज निभाया। मंगल दास को यह चिंता सता रही थी कि आखिर कब तक बेटियों पर बोझ बने रहेंगे। इसलिए जैसे ही लॉकडउन खुला तो वह हिमाचल लौट आए।
अब यहां आए हुए मंगल दास को 1 महिना हो गया है वह फिर से अपने काम पर लौट गए हैं। हिमाचल अभी अभी से खास बातचीत के दौरान उन्होंने अपनी आप बीती हमें बताई, जो हम आपको बता रहे हैं। ऐसे ही ना जाने कितने मंगल दास होंगे जो इस कोरोना काल के दौरान कई परेशानियों और मुश्किलों के किस्से समेटे बैठे हैं। जिनमें दुख है पीड़ा है और एक लंबा संघर्ष है।