पांडवों के अज्ञातवास से जुड़े मुरारी देवी मंदिर का रास्ता नहीं हो पाया पक्का

पांडवों के अज्ञातवास से जुड़े मुरारी देवी मंदिर का रास्ता नहीं हो पाया पक्का

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सुंदरनगर। जिला मंडी की बल्ह घाटी के मुरारी देवी मंदिर में माता के दर्शन करने के लिए लोग दूर-दूर से यहां पहुंचते हैं। यहां पर लोगों के लिए लंगर भी लगा रहता है। इसके साथ-साथ लोग यहां से सुंदरनगर, बल्ह घाटी के साथ साथ आसपास के दूसरे क्षेत्रों के नजारे भी देख सकते हैं। कच्चा मार्ग होने से पर्यटक यहां आने से भी मुंह फेरते हैं। लोग 8 किलोमीटर का सफर तय कर उबड़-खाबड़ रास्ता तय कर मंदिर पहुंचते हैं। इस मंदिर के लिए सड़क मार्ग पक्का करने का काम लोक निर्माण विभाग और वन विभाग की भूमि होने के कारण लटका है। वहीं, स्थानीय लोगों ने सरकार और प्रशासन से मांग की है कि मंदिर जाने वाले इस रास्ते को पक्का करवाया जाए, ताकि श्रद्धालुओं को परेशानियों का सामना ना करना पड़े।


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बता दें कि अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने इस मंदिर का निर्माण किया था। साथ ही मंदिर में मौजूद माता की मूर्तियां उसी समय पांडवों द्वारा स्थापित की गई हैं। इस मंदिर का इतिहास दैत्य मूर के वध से जुड़ा है। मान्यताओं के अनुसार प्राचीन काल में पृथ्वी पर दैत्य मूर को घोर तपस्या करने पर ब्रह्मा ने वरदान दिया कि तुम्हारा वध कोई भी देवता, मानव या जानवर नहीं करेगा, बल्कि एक कन्या के हाथों से होगा। इस पर घमंडी मूर दैत्य अपने आप को अमर सोच कर सृष्टि पर अत्याचार करने लगा। दैत्य मूर के अत्याचारों से त्रस्त होकर सभी प्राणी भगवान विष्णु से मदद मांगने पर मूर और भगवान विष्णु के बीच युद्ध हुआ, जो लंबे समय तक चलता रहा।

मूर दैत्य को मिला वरदान याद आने पर भगवान विष्णु हिमालय में स्थित सिकंदरा धार पहाड़ी पर एक गुफा में जाकर लेट गए। मूर उनको ढूंढता हुआ वहां पहुंचा और उसने भगवान के नींद में होने पर हथियार से वार करने का सोचा। ऐसा सोचने पर भगवान के शरीर की इन्द्रियों से एक कन्या पैदा हुई, जिसने मूर दैत्य को मार डाला। मूर का वध करने के कारण भगवान विष्णु ने उस दिव्या कन्या को दैत्य मूर का वध करने को लेकर मुरारी देवी के नाम से संबोधित किया। एक अन्य मत के अनुसार भगवान विष्णु को मुरारी भी कहा जाता है, उनसे उत्पन्न होने के कारण ये देवी माता मुरारी के नाम से प्रसिद्ध हुईं और उसी पहाड़ी पर दो पिंडियों के रूप में स्थापित हो गईं। इनमें से एक पिंडी को शांतकन्या और दूसरी को कालरात्री का स्वरूप माना गया है। मां मुरारी के कारण ये पहाड़ी मुरारी धार के नाम से प्रसिद्ध हुई।

मंदिर के पुजारी जगदीश शर्मा ने कहा कि वे पिछले सात साल से मंदिर में पुजारी का कार्य कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अज्ञातवास के समय पांडवों ने इस मंदिर का निर्माण किया था। साथ ही मंदिर में मौजूद माता की मूर्तियां उसी समय से स्थापित की गई हैं। मंदिर कमेटी के सचिव रोशन लाल ने बताया कि वर्ष 1992 में इस क्षेत्र के लगभग एक दर्जन गांव के लोगों ने मंदिर के विकास के लिए एक कमेटी का गठन किया। इसके बाद इस स्थल में भले ही विकास को पंख मंदिर कमेटी ने लगाए हैं, लेकिन सरकार के इस मंदिर को पर्यटन की दृष्टि से निखारने की दिशा में काम करने पर मुरारी धार पर्यटन की दृष्टि से उभरेगी और स्थानीय लोगों को रोजगार की भी अपार संभावनाएं बढ़ेंगी।

मंदिर में हर साल 25 से 27 मई को तीन दिवसीय मेला आयोजित किया जाता है। इसमें कुश्ती प्रतियोगिता एक बड़ा आकर्षण का केंद्र रहती हैं, जिसमें बाहरी राज्यों के पहलवान भी भाग लेते हैं। बता दें कि मंदिर सराय में एक हजार से अधिक श्रद्धालुओं के ठहरने की व्यवस्था है। मंदिर पहुंचे श्रद्धालु आदित्य गुप्ता ने बताया कि वे पिछले लगभग 20 वर्ष से मंदिर आ रहे हैं और उनकी कुलदेवी भी माता मुरारी देवी है। उन्होंने कहा कि यहां पर जो भी श्रद्धालु आता है खाली हाथ नहीं लौटता है और माता सभी की मन्नत पूरी करती है।

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