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हिंदू धर्म में माघ के महिने को पवित्र और पावन माना जाता है। कहते हैं जो इस मास में व्रत और तप करता है उसे बहुत पुण्य मिलता है। माघ के माह की कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को षट्तिला कहते हैं। षट्तिला एकादशी के दिन मनुष्य को भगवान विष्णु के निमित्त व्रत रखना चाहिए। इस साल षट्तिला एकादशी व्रत 7 फरवरी 2021 (रविवार) को रखा जाएगा। षट्तिला एकादशी के दिन पूजा-पाठ के साथ दान का विशेष महत्व होता है। एकादशी के दिन सच्चे मन से भगवान विष्णु की पूजा करने वाले को सभी कष्टों से छुटकारा मिलता है और अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है। शास्त्रों के अनुसार, षट्तिला एकादशी के दिन तिल को पानी में डालकर नहाना शुभ माना जाता है। इसके साथ ही भगवान विष्णु को भी पूजा के दौरान तिल अर्पित करने चाहिए। इस दिन गरीब या जरूरतमंद को तिल का दान देना शुभ होता है। इस दिन तिल से बनी सेवइयों का भी सेवन किया जाता है। इस दिन व्रत करने वालों को इन नियमों का पालन अवश्य करना चाहिए।
– इस दिन व्रती को सुबह जल्दी उठना चाहिए और स्नान करना चाहिए।
– इसके बाद पूजा स्थल को साफ करना चाहिए। अब भगवान विष्णु और भगवान कृष्ण की मूर्ति, प्रतिमा या उनके चित्र को स्थापित करना चाहिए।
– भक्तों को विधि-विधान से पूजा अर्चना करनी चाहिए।
-पूजा के दौरान भगवान कृष्ण के भजन और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना चाहिए।
– प्रसाद, तुलसी जल, फल, नारियल, अगरबत्ती और फूल देवताओं को अर्पित करने चाहिए।
-पूजा के दौरान मंत्रों का जाप करना चाहिए।
– अगली सुबह यानि द्वादशी पर पूजा के बाद भोजन का सेवन करने के बाद षट्तिला एकादशी व्रत का पारण करना चाहिए।
षटतिला एकादशी व्रत कथाः एक समय की बात है एक नगर में एक ब्राह्मणी रहती थी। वह भगवान श्रीहरि विष्णु की भक्त थी। वह भगवान विष्णु के सभी व्रतों को नियम से करती थी। एक बार उसने 1 महीने तक व्रत और उपवास रखा, जिसकी वजह से शरीर दुर्बल हो गया, लेकिन तन शुद्ध हो गया। अपने भक्त को देखकर भगवान ने सोचा कि तन शुद्धि से इसे बैकुंठ तो प्राप्त हो जाएगा, लेकिन उसका मन तृप्त नहीं होगा। उसने एक गलती की थी कि व्रत के समय कभी भी किसी को कोई दान नहीं दिया था। इस वजह से उसे विष्णुलोक में तृप्ति नहीं मिलेगी। तब भगवान स्वयं उससे दान लेने के लिए उसके घर पर गए।
वे उस ब्राह्मणी के घर भिक्षा लेने गए, तो उसने भगवान विष्णु को दान में मिट्टी का एक पिंड दे दिया। श्रीहरि वहां से चले आए। कुछ समय बाद ब्राह्मणी का निधन हो गया और वह विष्णुलोक पहुंच गई। उसे वहां पर रहने के लिए एक कुटिया मिली, जिसमें कुछ भी नहीं था सिवाय एक आम के पेड़ के। उसने पूछा कि इतना व्रत करने का क्या लाभ? उसे यहां पर खाली कुटिया और आम का पेड़ मिला। तब श्रीहरि ने कहा कि तुमने मनुष्य जीवन में कभी भी अन्न या धन का दान नहीं दिया। यह उसी का परिणाम है। यह सुनकर उसे पश्चाताप होने लगा, उसने प्रभु से इसका उपाय पूछा। तब भगवान विष्णु ने कहा कि जब देव कन्याएं तुमसे मिलने आएं, तो तुम उनसे षटतिला एकादशी व्रत करने की विधि पूछनाष जब तक वे इसके बारे में बता न दें, तब तक तुम कुटिया का द्वार मत खोलना। भगवान विष्णु के बताए अनुसार ही उस ब्राह्मणी ने किया। देव कन्याओं से विधि जानने के बाद उसने भी षटतिला एकादशी व्रत किया। उस व्रत के प्रभाव से उसकी कुटिया सभी आवश्यक वस्तुओं, धन-धान्य आदि से भर गई। वह भी रुपवती हो गई।
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