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दुनियाभर को कोरोना वायरस जैसी महामारी देने वाले चीन में भी इसका बुरा असर पड़ा है। कोरोना वायरस (Coronavirus) से पीड़ित मरीजों का इलाज करने और वेंटिलेटरों पर सैकड़ों की संख्या में दम तोड़ते मरीजों को लगातार देखने वाले डॉक्टरों और नर्सिंग स्टाफ (Doctors and Nursing Staff) के दिल-दिमाग पर इसका गहरा असर हुआ है। यह जानकारी करीब एक हजार डॉक्टर व नर्सों पर चीन और अमेरिका के प्रतिष्ठित संस्थानों के अध्ययन में सामने आई हैं। करीब 63 फीसदी ने स्वीकार किया है कि लगातार आघात पहुंचाने वाले दृश्यों ने उनके दिमाग को बीमार किया है। इनमें से 17.5 फीसदी मनोचिकित्सकों से थैरेपी करवा रहे हैं। बाकी दूसरे तरीकों से सामान्य होने का प्रयास कर रहे हैं।
इस अध्ययन को रेनमिन अस्पताल वुहान विवि के मनोचिकित्सा व नर्सिंग विभाग, कैलिफोर्निया विवि के मनोचिकित्सा विभाग, हुआझोंग विज्ञान एवं तकनीकी विश्वविद्यालय वुहान के कंप्यूटर साइंस विभाग और वुहान विवि के स्वास्थ्य विज्ञान स्कूल आदि ने पूरा किया। अध्ययन में वुहान के 994 चिकित्सकों व पैरा मेडिकल स्टाफ के बीच अध्ययन में काफी चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं।
इन लोगों ने महामारी की शुरुआत में डर और बेचैनी महसूस की। बाद में उनमें अवसाद और पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस के लक्षण सामने आए। संक्रमण के जोखिमपूर्ण वातावरण में और संक्रमित लोगों के लिए काम करना इसकी प्रमुख वजह बनी। पहले हुए इस प्रकार के अध्ययनों के अनुसार डॉक्टरों के दिमाग पर यह असर जीवन भर बना रहता है।
ये चिकित्सक राहत के लिए 36.3 फीसदी मनोविज्ञान की किताबें पढ़ रहे हैं। 50.4 फीसदी ऑनलाइन सामग्री पढ़ रहे सेल्फ हेल्प समूहों की मदद ले रहे हैं। 17.5 प्रतिशत मनोचिकित्सकों से काउंसलिंग और थेरैपी ले रहे हैं।
अध्ययन के अनुसार बड़ी संख्या में चिकित्साकर्मी महामारी के समय मनोवैज्ञानिक समस्याओं से जूझते नजर आए। ऐसे में उनकी समस्याओं पर ध्यान देने और पहले से उन्हें इन हालात के लिए तैयार करने की सिफारिश की गई है। भविष्य में या बाकी देशों में ऐसे हालात होने पर वहां भी व्यापक तैयारियों की जरूरत बताई गई है।
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