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नई दिल्ली। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के डॉक्टर्स ने बॉलीवुड की बहुचर्चित फिल्म ‘थ्री इडियट्स’ की ही तरह जुगाड़ लगाते हुए एक बच्चे की जान बचा ली। हालांकि, इस फिल्म में एक तकनीकों का जुगाड़ कर प्रसव किया जाता है लेकिन, ऐम्स के चिकित्सकों ने फोन की रौशनी में एक बच्चे की सांस की नली में ट्यूब लगाने का कारनामा कर दिखाया।
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इस बच्चे को एक्यूट इंफ्लामेटरी डीमाइलिनेटिंग पॉलीन्यूरोपैथी बीमारी थी। उसे आईसीयू में वेंटिलेटर सपोर्ट देना जरूरी था। हालांकि ऐसा करने से पहले उसके गले में एक ट्यूब डालने की जरूरत थी, इसके लिए आईसीयू में ब्रांकोस्कोप की मदद से ऐसा करना शुरू किया गया लेकिन इतने में ही ब्रांकोस्कोप से जुड़ा बल्ब फ्यूज हो गया। उस दौरान यह तब हुआ जब ब्रांकोस्कोप व निडिल बच्चे की सांस की नली के अंदर थे।
बल्ब फ्यूज होने से डॉक्टर सांस की नली के अंदर की स्थिति नहीं देख पा रहे थे और ब्रांकोस्कोपी की ट्यूब को निकालने से भी मरीज को परेशानी हो सकती थी। इसलिए डॉक्टरों ने ब्रांकोस्कोपी के ट्यूब को निकालकर पास मौजूद मोबाइल फोन की फ्लैश लाइट के पास फिक्स कर दिया। इससे रोशनी गले के अंदर जाने लगी। मोबाइल की फ्लैश लाइट काफी से प्रोसिजर पूरी तरह से सफल रही। वह मरीज 20 दिनों तक आईसीयू में रहा और स्वास्थ्य में सुधार होने पर बाहर निकलने में कामयाब रहा।
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