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शिमला। खरपतवार को नष्ट करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली पैराक्वाट दवा बहुत ही खतरनाक है। यह इतना खतरनाक है कि खरपतवार को जला देता है। यही नहीं, इससे जमीन भी खराब हो जाती है और इसका असर मिट्टी के साथ-साथ पेयजल पर भी पड़ सकता है। क्योंकि इससे न केवल मिट्टी खराब होती है, बल्कि इंसानों के लिए भी जानलेवा है। यह खरपतवार नाशक कई देशों में प्रतिबंधित है और देश में केरल में इसे बैन कर दिया गया है। लेकिन, कई राज्यों में अभी भी यह इस्तेमाल हो रहा है और हिमाचल भी इसमें एक है। बताते हैं कि आत्महत्या करने वाले भी इसका प्रयोग करने लगे हैं और इसके सेवन से इंसान फिर जिंदा नहीं रह पाता है। यह क्योंकि खरपतवार नाशक है, इसलिए इसका एंटीडोड तैयार नहीं किया गया है। यूरोपीय संघ के सदस्यों सहित 32 देशों ने पैराक्वाट पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया है।
आईजीएमसी के नेफ्रोलाजी विभाग के अध्यक्ष डॉ. संजय विक्रांत के मुताबिक पैराक्वाट बहुत ही खतरनाक है और इसका इस्तेमाल कर आत्महत्या करने के प्रयासों की मृत्युदर अपेक्षाकृत अधिक है। उनके मुताबिक पैराक्वाट के इस्तेमाल से आत्महत्याओं की संख्या हर वर्ष कई हजारों में अनुमानित है। उनका कहना था कि पैराक्वाट विषाक्तता के पिछले 10 वर्षों में 56 मरीज आईजीएमसी अस्पताल शिमला में आए थे। इनमें से 41 लोगों की मौत हो गई थी। इस वर्ष अब तक 17 लोग इसके सेवन के शिकार आए थे और इनमें से 14 की मौत हो गई है। ऐसे में इस घातक जहर के बारे में जागरुकता जरूरी है, ताकि लोग इससे दूर रहे और किसी भी कार्य में इसका इस्तेमाल न करे।
डॉ. विक्रांत के मुताबिक विश्व स्वास्थ्य संगठन और पैस्टीसाइड एक्शन नेटवर्क इंटरनेशनल ने पैराक्वाट को सबसे खतरनाक कीटनाशकों में सूचीबद्ध किया है। यह एक खतरनाक है और प्रजनन संबंधी समस्याओं और पार्किंसन रोग से भी जुड़ा है। इसका असर शरीर के अहम अंगों पर होता है और नतीजतन इंसान की मौत हो जाती है।
डॉ. विक्रांत ने कहा कि यह जहर बाजार में बहुत आसानी से मिल रहा है और इसलिए सरकार को चाहिए कि इस पर रोक लगाई जाए। उनका कहना था कि यदि इसके सेवन के बाद मरीज 5 से 6 घंटे के भीतर अस्पताल न पहुंचा तो उसे बचाना मुश्किल हो जाता है, क्योंकि तब तक यह पूरे शरीर में फैल जाता है। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा लोगों को इस घातक जहर के प्रति जागरूक करने की सख्त जरूरत है, ताकि लोगों को बचाव किया जा सके।
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