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उम्र का बढ़ना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। बढ़ती उम्र के साथ बहुत सी बीमारियां भी घेर लेती है। खास तौर पर महिलाओं में उम्र बढ़ने यानी 40 पार करते ही हार्मोलन चेंजेस होते है। ऐसे में बीमारियों की संभावना भी अधिक रहती है। इसलिए बेहतर है कि अपनी सेहत की जांच समय-समय पर करवाई जाए और इन बीमारियों से बचा जाए। 40 की उम्र में चुस्त दुरुस्त बने रहने के लिए सेहत के प्रति सजग रहना बहुत जरूरी है। इसके लिए कुछ मेडिकल टेस्ट हर महिला को करवाने चाहिए। जो संभावित बीमारियों को समय पर पकड़ लें और उनका इलाज किया जा सके। हम आप को बता रहे हैं उन टेस्ट के बारे में जो हर महिला को 40 की उम्र पार करने के बाद करवाने चाहिए….
थाइरॉइड टेस्ट: इसकी जांच की भी कोई उम्र वैसे तय नही लेकिन जरूरी है कि आफ्टर 40 इसकी जांच जरूरी है। थाइरॉइड धीरे धीरे पूरी बॉडी के सिस्टम पर अटक करता है और फिज़िकली ही नही मेंटली भी प्रॉब्लम क्रिएट करता है।
सर्वाइकल कैंसर स्क्रीनिंग: पेप स्मीयर टेस्ट सर्वाइकल कैंसर की जांच के लिए किया जाता है। वैसे तो इसकी जांच 30 के बाद से ही हर पांच साल पर करना चाहिए लेकिन 40 के बाद तो ये जरूरी टेस्ट में शामिल होना ही चाहिए। 65 साल के होने तक सर्वाइकल कैंसर का खतरा ज्यादा होता है। ये टेस्ट यूट्रेस और यूट्रेस सी जुड़ी नलियों में होने वाले इंफेक्शन और सूजन को पता करने किये होता है।
ब्रेस्ट कैंसर स्क्रीनिंग : 40 के बाद ब्रेस्ट कैंसर के होनेके चान्सेस ज्यादा होते है इसलिए समय रहते इसकी जांच करते रहें। इसके लिए मेमोग्राफी करना होगा। हर 2 साल पर ये जांच करा लेनी चाहिए।
ब्लड प्रेशर/ कैलेस्ट्रोल: 40 प्लस फीमेल्स को वीकली या मंथली बीपी टेस्ट करना चाहिए। अगर डाइबिटीज, हार्ट या किडनी की प्रॉब्लम हो तो ये जांच और जरूरी हो जाता है। फीमेल्स अपनी हेल्थ को लेकर बहुत कॉन्शियस नही होतीं। इसलिए कुछ जांच इनके लिए जरूरी हो जाती है। थीके इसी तरह हर साल कैलेस्ट्रोल की जांच भी करना जरूरीहै।
साइकोलॉजिकल स्क्रीनिंग: सुनने में भले ही ये लगता हो कि इसकी जरूरत क्या लेकिन इसे हल्के में लेने की भूल न करें। आफ्टर 40 मूड स्विंग के कारण डिप्रेशन के साथ कई और प्रॉब्लम जुड़ने लागती हैं। नींद न आना, चिड़चिड़ापन, जीने की इच्छा की कमी जैसे लक्षण अचानक से गंभीर हो कर सामने आते हैं। ये सब 75 प्रतिशत फीमेल्स में होता ही है क्योंकि हार्मोनल चेंजेस के कारण ऐसा हो जाता है। इसके लिए स्क्रीनिंग टेस्ट होता है जिनमे साइकोलॉजी से जुड़े प्रश्नों के आधार पर डॉक्टर्स इलाज करते हैं।
ओस्टियोपोरोसिस टेस्ट: वैसे तो अब ये किसी भी उम्र में होने लगा है लेकिन आफ्टर 40 इसका इफेक्ट तेज़ी से होता है। हड्डियों मका भुरभुरापन इस बीमारी की मुख्य वजह है। कैल्शियम और फॉस्फोरस की शरीर मे होती कमी के कारण शरीर अपनी जरूरत को पूरा करने के लिए हड्डियों से कैलशियम लेने लगता है और परिणामस्वरूप हड्डियां पावडर बनने लगती है औरहलकी चोट से भी हड्डी टूटने और स्लिप डिस्क जैसी समस्याएं होने लगती हैं। इससे बचने के लिए जरूरी है कि ओस्टियोपोरोसिस का टेस्ट जरूर कराया जाय।
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