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कुल्लू। लाहुल-स्पीति में बहने वाली पवित्र चंद्रभागा के संगम स्थल पर रविवार को धार्मिक अनुष्ठान के रूप में मेले का आयोजन किया गया। यह अपनी तरह का पहला आयोजन है जो लाहुल के लोगों ने पौराणिक चंद्रभागा (Chabdra Bhaga) नदी की विरासत का सम्मान करने के लिए शुरू किया था। स्थानीय लोगों का मानना है कि रानी द्रौपदी ने अपना शरीर यहां छोड़ा था और चंद्रभागा संगम के आस पास रहने वाले ग्रामीणों ने उनका अंतिम संस्कार किया और उनकी अस्थियों को इसी नदी (River) में विसर्जित किया। तब से अस्थियां विसर्जित करने की परंपरा शुरू हुई। 2016 में विश्व हिंदू परिषद के नेता अशोक सिंघल के नश्वर अवशेषों को विसर्जित करके चंद्रभागा संगम पर्व के नाम से एक स्थानीय मेला शुरू किया था।
मुख्य आयोजक डॉ. चंद्र मोहन परशीरा ने कहा कि चंद्रभागा एक वैदिक नदी है जिसका उल्लेख ऋग्वेद में गंगा, यमुना और सरस्वती के साथ किया गया है। कई हिंदू और बौद्ध धर्म ग्रंथ इसकी धार्मिक पवित्रता का विस्तार से वर्णन करते हैं। डॉ. परशीरा कहा कि इस नदी का पवित्र संगम, जिसे चिनाब नदी की शुरुआत के रूप में जाना जाता है, को सौ से अधिक मेगावाट क्षमता की बिजली परियोजना के लिए एक पनबिजली कंपनी को भी आवंटित किया गया था, जिसे बाद में कंपनी ने हजार साल पुराने धार्मिक महत्व को समझते हुए वापस ले लिया।
अगले वर्ष बड़े स्तर पर होगा मेले का आयोजन
विश्व हिंदू परिषद के जिला अध्यक्ष और संगम पर्व के समन्वयक प्रेम लाल ने कहा कि अगले साल इस मेले का आयोजन हम बड़े पैमाने पर करेंगे और राज्य और केंद्र सरकार के शीर्ष महानुभावों को आमंत्रित करेंगे। उनके अनुसार यहां पर एक विशाल सभागार, खुला रंगमंच, द्रौपदी का मंदिर, ध्यान केंद्र, बौद्ध स्तूप, अनुष्ठान केंद्र, श्मशान और पवित्र जल एकत्र करने के लिए घाट और पवित्र स्नान करने के प्रदेश और केंद्र सरकार से मांग की है
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