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इक “शख़्स” सारे शहर को वीरान कर गया
Last Updated on July 9, 2021 by Sintu Kumar
वीरभद्र सिंह हमेश के लिए चले गए लेकिन वो अपने पीछे बहुत सारी ऐसी बातों तो छोड़ गए हैं जो इतिहास के पन्नों में दर्ज है। उन्हीं में से एक मसला धर्मशाला से भी जुड़ा हुआ है। धर्मशाला को राजधानी का दर्जे को पूरा करने की मांग को तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने ही पूरा करने के लिए कदम उठाए थे। इतिहास के पन्नों पर इसकी शुरूआत 165 वर्ष पूर्व शुरू हुई थी। ब्रिटिश हकूमत में भारत के वायसराय एवं गवर्नर जनरल लॉर्ड एल्गिन 1852 में धर्मशाला आए थे। इस दौरान उन्होंने लंदन में ब्रिटिश सरकार को यह प्रस्ताव भेजा कि धर्मशाला को ग्रीष्मकालीन राजधानी बना दिया जाए लेकिन अंग्रेज अधिकारियों को शिमला पसंद आ गया। निचले हिमाचल की जनता की भावनाओं को समझते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने वर्ष 1994 में शीतकालीन प्रवास की परंपरा शुरू की थी और जनता के एक समान विकास के लिए ही वीरभद्र सिंह ने ही दिसंबर 2005 में पहली बार प्रदेश की राजधानी शिमला से बाहर विधानसभा के शीतकालीन सत्र का आयोजन किया था। तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने 25 दिसंबर 2006 को तपोवन में विधानसभा भवन का नींव पत्थर रखा था। धर्मशाला में विधानसभा के शीतकालीन सत्रों का आयोजन किया जा चुका है जो अपने आप में एक मील पत्थर है। इसके बाद विधानसभा भवन भी बनाया गया और कांग्रेस सरकार ने शीतकालीन सत्र की परंपरा शुरू की। धर्मशाला को अघोषित राजधानी कहा जाने लगे। इसके बाद वीरभद्र सिंह ने धर्मशाला को दूसरी राजधानी बनाने को लेकर भी कदम उठाया था। प्रदेश का जिला कांगड़ा सबसे बड़ा़ जिला भी है इसको देखते हुए उन्होंने जिला मुखयालय धर्मशाला को प्रदेश की दूसरी राजधानी का दर्जा भी दिया था। लेकिन कांग्रेस सरकार के सत्ता से बाहर होने के बाद यह मामला विवादों में ही रहा। जिला कांगड़ा के लिए उनकी यह देन रही। धर्मशाला को दूसरी राजधानी का दर्जा दिए जाने के बाद उनके द्वारा धर्मशाला में मिनी सचिवालय की भी स्थापना करवाई गई और यह भी सुनिश्चित करवाया गया कि जिला कांगड़ा ही नहीं बल्कि प्रदेश के अन्य मंत्री भी धर्मशाला में बैठे कर लोगों की समस्याओं का हल करें। और तब से लेकर आज तक भाजपा सरकार भी उनके पद चिन्हों पर काम काम रही है।