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ज्योतिष में रोग निवारण के लिए औषधि, मंत्र, यंत्र, रत्न और अनुष्ठान का प्रयोग भी किया जाता है। कई बीमारियों में धातुओं से संयोजित कर रत्नों और उपरत्नों को धारण करना काफी कारगर सिद्ध होता है। केवल रोगों में ही नहीं अन्य समस्याओं के समाधान में भी रत्न उपयोगी सिद्ध हो चुके हैं। रत्न धारण करते ही उनकी चुम्बकीय शक्ति तथा कास्मिक कलर शरीर में प्रवेश कर अपना प्रभाव डालते हैं। रत्नों के रंग प्रकृति द्वारा निर्मित विशुद्ध है। उनका तालमेल ब्रह्माण्ड के रंगों से सही रूप में होता है।
पृथ्वी के नीचे प्राकृतिक प्रक्रिया के अंतर्गत भंयकर दबाव में इनमें रंगों के साथ ही एक चुम्बकीय शक्ति भी उत्पन्न हो जाती है जो मानव निर्मित रंगीन कांच में नहीं हो सकती। इसलिए रत्न विशेष प्रभावशाली होते हैं। ग्रहों के साथ रत्नों का संयोजन भौतिक विज्ञान के आधार पर प्राचीन लोगों ने किया है, जिसमें कोई त्रुटि नहीं है। जानते हैं किन रोगों के लिए कौन से रत्न उपयोगी होते हैं…
माणिकः सूर्य रत्न माणिक हृदय रोग, पीठ के दर्द,चर्म रोग, हड्डी के रोग, नेत्ररोग, पेप्टिक अल्सर में उपयोगी है। यह बहुत मंहगा नग है। अगर उपलब्ध नहीं हो तो अच्छी किस्म का तामड़ा ताम्र मिश्रित सोने की अंगूठी में अनामिका में धारण करना चाहिए।
मोतीः यह चन्द्रमा का रत्न है आजकल अच्छा मोती कठिनाई से मिलता है इसलिए मूनस्टोन चांदी की अंगूठी में धारण करने से मानसिक रोगों तथा शीत, कफ,कैल्शियम की कमी में लाभदायक होता है। मानसिक रोगों में पन्ना के साथ मिलकर पहनने से विशेष प्रभावकारी हो जाता है।
मूंगाः मंगल रत्न मूंगा चोट चपेट, घाव,ऑपरेशन, स्त्रियों के रजोधर्म के रोग, गर्भधारण में उपयोगी होता है। इसे सोने या चांदी में सूर्य की उंगली अनामिका में धारण किया जाता है।
पन्नाः बुध रत्न पन्ना मस्तिष्क पर विशेष प्रभाव डालता है। मन की चंचलता, स्मृति की कमी, श्वास के रोग, हिस्टीरिया में यह उपयोगी पाया गया है। इसे आवश्यकता अनुसार चांदी या सोने में कनिष्ठिका में पहना जाता है।
पुखराज -ंबृहस्पति रत्न पुखराज यकृत के रोगों, कुकुर खांसी, गैस्टिक रोग तथा तिल्ली के रोगों पर लाभदायक है। सोने कीअंगूठी में इसे आवश्यकतानुसार तर्जनी या अनामिका में पहना जाता है।
हीराः यह शुक्र का रत्न हैं। कष्चप्रद रजोधर्म, श्वेतप्रदर, नपुंसकता, मूत्रविकार, मधुमेह में यह रत्न का उपयोग लाभदायक सिद्ध हुआ है। इसे स्थिति के अनुसार बुध,शुक्र या शनि की अंगूठी में धारण किया जाता है।
नीलमः शनि रत्न नीलम अच्छे बुरे प्रभाव को तीव्रता से प्रकट करता है, इसे बिना किसी योग्य ज्योतिषि से पूछे बिना नहीं पहनना चाहिए। वायु विकार, गठिया, पक्षघात,राजयक्ष्मा, दमा में इसे धारण किया जाता है। परिस्थिति के अनुसार चांदी,लोहे या सोने की अंगुठी में मध्यमा में इसे धारण किया जाता है।
गोमेदः यह राहु का नग है। बवासीर, कफ, बदहजमी, चर्मरोग, मानसिक रोग में इसे धारण किया जाता है।
लहसुनियाः केतु रत्न लहसुनिया रहस्मय रोगों, जिनकानिदान नही हो रहा है या विष जनित रोगों, जीर्ण चर्म रोगों में लाभदायक सिद्ध हुआ है।
– पहले रोग का सही निदान करा लें। रोग का स्थान, कारण संबंधित ग्रह का निर्णय कर लें।
– शुद्ध और उचित तौल का नग लें। वैदिक मंत्रों से नग में प्राण प्रतिष्ठा करा लें।
– उपयुक्त धातु की अंगूठी बनवाए तथा सही मुहूर्त ग्रह का वार, नक्षत्र में ही रत्न धारण करें।
– अंगूठी को उंगली से निकालकरजमीन पर मत रखें, न किसी दूसरे को पहनने के लिए दें।
कैप्टन डॉ. लेखराज शर्मा, ज्योति-नुवजयााचार्य (स्वर्णपदक), शारदा ज्योति-नुवजया निकेतन जोगिंद्रनगर
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